जिरह पढ़ें, आप अपनी लिपि में (Read JIRAH in your own script)

Hindi Roman(Eng) Gujarati Bangla Oriya Gurmukhi Telugu Tamil Kannada Malayalam

 
जिरह करने की कोई उम्र नहीं होती। पर यह सच है कि जिरह करने से पैदा हुई बातों की उम्र बेहद लंबी होती है। इसलिए इस ब्लॉग पर आपका स्वागत है। आइए,शुरू करें जिरह।
'जिरह' की किसी पोस्ट पर कमेंट करने के लिए यहां रोमन में लिखें अपनी बात। स्पेसबार दबाते ही वह देवनागरी लिपि में तब्दील होती दिखेगी।

Sunday, February 3, 2008

बंद घड़ी के कांटे

मेरा कमरा
जिसमें एक विशेष गंध
तैरती है
जो दूसरे कमरों में नहीं।
मुझे बेहद लगाव है
कमरे में टंगी
मोनालिसा से
ठहरी हुई गंध से

खिड़की से दिखता
आसमान का टुकड़ा
जैसे सारा यथार्थ
वहीं कहीं अटका होगा
और मैं ढूंढ़ने लगता हूं
उस टुकड़े में ज़िंदगी।
एक संपूर्ण ज़िंदगी
सुख-दुख, पाप-पुण्य
आत्मा-परमात्मा...
इन सब से भी परे कुछ

उस टुकड़े में
कई तस्वीरें बनती हैं-मिटती हैं
मेरे सोच के साथ-साथ।
तभी एक चित्र दिखता है,
मैं पहचानने की कोशिश करता हूं,
वहां मेरे कमरे की गंध है,
बंद पड़ी घड़ी है,
ठहरा हुआ समय है,
समूचा मेरा कमरा है,
कमरे में मैं हूं,
और मुझे देखकर
मुस्कुराती हुई मोनालिसा है।

(प्रसारित/प्रकाशित)