तुमने कहा 'दुनिया'
और मुझे कसाईबाड़े की याद आई
तुमने कहा 'जनता'
और मुझे
लाचार मेमनों की याद आई।
यक़ीन मानो,
अब और कोई भी शब्द
तुम्हारे मुंह से
सुनने की तबीयत नहीं।
क्योंकि प्रजातंत्र जब हाशिये की चीज़ हो जाए
और तुम हमें
सिखाने लगो
कि दो और दो
पांच होते हैं
तो दुनिया और जनता की बात
तुम्हारे मुंह से सुनना
भद्दे मज़ाक की तरह लगती है।
यह घटिया मज़ाक
तुमने बहुत दिनों तक कर लिया
और हर बार हमने
ज़हर का घूंट पीया।
लेकिन कहते हैं न
कि जब आक्रोश की आंखें
सुलगती हैं
तो समुद्र को भी
रास्ता देना पड़ता है।
इसलिए देखो,
हम सब तहज़ीब में
परिवर्तन कर रहे हैं
भजन-कीर्तन छोड़कर
अब आग का समर्थन कर रहे हैं।
Thodi si Bewafai....
3 years ago
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