इस कस्बे में
समझौता नहीं होता
किसी चीज़ की
कोई सीमा नहीं।
सिर्फ़
मतलब के साथ
भटकते लोग हैं
सिपाही हैं, सलाहकार हैं
पटवारी हैं, बनवारी हैं
और हर तरफ़
ज़िंदगी
आदमी पर भारी है।
यहां
न कोई किसी का बाप है
न कोई किसी की मां
न कोई भाई है
और न कोई बहन
दरअसल,
सभी अपने सपने में
मस्त हैं
इंसानियत का खंभा
ध्वस्त है।
(प्रसारित)
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