जिरह पढ़ें, आप अपनी लिपि में (Read JIRAH in your own script)

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जिरह करने की कोई उम्र नहीं होती। पर यह सच है कि जिरह करने से पैदा हुई बातों की उम्र बेहद लंबी होती है। इसलिए इस ब्लॉग पर आपका स्वागत है। आइए,शुरू करें जिरह।
'जिरह' की किसी पोस्ट पर कमेंट करने के लिए यहां रोमन में लिखें अपनी बात। स्पेसबार दबाते ही वह देवनागरी लिपि में तब्दील होती दिखेगी।

Wednesday, February 25, 2009

सोच समझ कर लिखें ब्लॉग में

जो लोग ब्लॉग को निजी डायरी मान बैठे हैं और इस नाते जो मन में आए यहां बुकड़ देते हैं; उन्हें दैनिक हिंदुस्तान में आज छपी यह खबर जरूर पढ़नी चाहिए। नई दिल्ली के विशेष संवाददाता के हवाले से यह खबर छापी गयी है। दैनिक हिंदुस्तान की इस खबर को साभार जिरह पर अपने ब्लॉगर साथियों के लिए पेश कर रहा हूं।

-अनुराग अन्वेषी


ब्लॉ
ग पर मनमर्जी की बकवास लिखने, भड़ास, कुंठाएं प्रकट करने और अपुष्ट आरोप लगाने वाले सावधान। यह मानहानि का अपराध हो सकता है जिसके लिए तीन साल की सजा तथा दो लाख रुपये का जुर्माना हो सकता है। सुप्रीम कोर्ट ने ऐसे ही एक मामले में ब्लॉग पर राजनीतिक पार्टी के खिलाफ अभियान चलाने वाले युवक को राहत देने से इनकार कर उसके खिलाफ दायर मानहानि की एफआईआर रद्द करने से इनकार कर दिया।

मुख्य न्यायाधीश जस्टिस केजी बालाकृष्णन और पी सथाशिवम की खंडपीठ ने करल के यवक की रिट याचिका खारिज करते हुए कहा कि इस बारे में कानून अपना काम करेगा। कोर्ट ने यह तर्क ठुकरा दिया कि ब्लॉग पर लिखे गये शब्द ब्लॉगर्स समुदाय के लिए ही थे, सार्वजिनक नहीं। इस संबंध में साइबर कानून के विशेषज्ञ पवन दुग्गल कहते हैं कि ब्लॉग लिखने वालों को अपनी सीमा में रहना चाहिए। ब्लॉग एक सार्वजनिक स्थल है जिस पर लिखी गई हर बात सार्वजनिक होती है। आईटी एक्ट में इसके दुरुपयोग पर रोक है। इस कानून में ब्लॉगर को 'इंटरमीडियरी सर्विस सोर्स' की श्रेणी में रका गया है जो साइट पर लिखी हर बात के लिए नेटवर्क सर्विस प्रोवाइडर की तरह जिम्मेदार होता है। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम पर आप किसी की मानहानि नहीं कर सकते। उन्होंने कहा कि ब्लॉग सार्वजनिक स्थल है इसलिए इसमें कही गई कोई भी बात आपराधिक और सिविल मानहानि का कारण बन सकती है। आपराधिक मामले में मानहानिकर्ता को तीन साल की सजा तथा दो लाख रुपये जुर्माना हो सकता है। युवक ने सीधे सुप्रीम कोर्ट में रिट याचिका दायर की थी और कहा कि उसके खिलाफ दर्ज एफआईआर रद्द की जाए क्योंकि ब्लॉग पर पोस्ट किए गए कमेंट ब्लॉगर्स समुदाय के लिए थे, सार्वजनिक नहीं।

Wednesday, February 18, 2009

चलो, व्यूह रचें

मां की कविता प्रतीक्षा पढ़ते हुए ये बातें 26 दिसंबर 95 की रात लिखी थीं। प्रतीक्षा यहां पढ़ी जा सकती है।

निःशब्द
होकर बिखर जाना,
किसी ताजा खबर की आस में
सचमुच
बहुत बड़ी भ्रांति है
सच है
कि सपने प्यारे होते हैं
लेकिन
वासंती बयार के साथ
उन्हें उड़ा देना
ठीक वैसा ही है
कि हम विरोध करें
और हमारी तनी मुट्ठियां
हवा में आघात करें
इसलिए चलो
बाहर की उमस को बढ़ने से रोकें
और
फिर से
युद्ध के लिए एक व्यूह रचें।

Saturday, February 14, 2009

मां

मां की कविता 'गूलर के फूल' पढ़ते हुए 6 फरवरी 95 की रात 2 बजे मेरी प्रतिक्रिया यह थी। 'गूलर के फूल' 'चांदनी आग है' (मां की कविताओं का संग्रह) में शामिल है। कविता यहां पढ़ी जा सकती है।


गूलर के फूल
की तलाश में
तुम
बि-ख-र-ती गयी
और बुनती रही
हमारे लिए
बरगद-सी छांव