पता नहीं क्यों प्रियदर्शन की यह कविता मुझे बेहद लुभाती है। जब भी अकेला महसूस करता हूं यह कविता मुझे बल देती है। नतीजा है कि इसे पढ़कर आपको सुनाने के लोभ का संवरण नहीं कर पाया। प्रियदर्शन वाकई लाजवाब लिखता है। उसकी व्यस्तता मैंने बेहद करीब से देखी है, पर समझ नहीं पाया कि इतना सोचने का वक्त उसे कब मिलता है। मैं यह भी पूरे दावे के साथ नहीं कह सकता कि वह लिखने के पहले काफी सोचता-विचारता है। और यह भी नहीं कि वह बगैर सोचे लिख डालता है। जाहिर है उसकी रचना प्रक्रिया मेरे लिए रहस्य जैसी है। कुतुहल पैदा करने जैसी है। विस्मय में डाल देने जैसी है। बहरहाल, उसकी कविता सुनें।
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6 comments:
गजब भाई...छा गये. बहुत खूब!!!
रचना तो बेहतरीन है ही इसे सुन कर आनंद द्वगुणित हो गया..
***राजीव रंजन प्रसाद
कई लोगों के गुस्से की तरह चुप्पी भी होती है खतरनाक ..बहुत सुंदर ..
वाकई एक उम्दा कविता है........
bahut acchhey..baar baar suni...
Excellent words + wonderful voice!
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