दिल की बात कहो जब, बंद किवाड़ समझते हैं
अजब अहमक हैं वो, तिल को ताड़ समझते हैं
कितनी बार कहा कि खुली हवा में घूम आएं
घर में बैठे हैं और घर को तिहाड़ समझते हैं
तकलीफें तो हैं, पर मन है अब भी हरा-भरा
उनसे क्या कहूं जो मुझको उजाड़ समझते हैं
यह उसका असर नहीं, आपमें बसा वह डर है
कि उसके मिमियाने को भी दहाड़ समझते हैं
डूबने से डरता था, पर जब उतरा तो डूबकर तैरा
इंसानी तमीज देखो कि राई को पहाड़ समझते हैं
अजब अहमक हैं वो, तिल को ताड़ समझते हैं
कितनी बार कहा कि खुली हवा में घूम आएं
घर में बैठे हैं और घर को तिहाड़ समझते हैं
तकलीफें तो हैं, पर मन है अब भी हरा-भरा
उनसे क्या कहूं जो मुझको उजाड़ समझते हैं
यह उसका असर नहीं, आपमें बसा वह डर है
कि उसके मिमियाने को भी दहाड़ समझते हैं
डूबने से डरता था, पर जब उतरा तो डूबकर तैरा
इंसानी तमीज देखो कि राई को पहाड़ समझते हैं
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