जिरह पढ़ें, आप अपनी लिपि में (Read JIRAH in your own script)

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जिरह करने की कोई उम्र नहीं होती। पर यह सच है कि जिरह करने से पैदा हुई बातों की उम्र बेहद लंबी होती है। इसलिए इस ब्लॉग पर आपका स्वागत है। आइए,शुरू करें जिरह।
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Monday, January 20, 2014

खुद की सांसों से जब लिहाफ गरम होता है
पस्त पड़ती है ठंड, शरीर नरम होता है।

अजब शहर है दिल्ली, रौनक देखो यहां की
जिससे भी मिलो, सगे होने का भरम होता है।

अजब हाल है, शक होने लगा है खुद पर भी
क्योंकि अब तो हर मर्द में एक हरम होता है।

वह संस्कार गुम हो गया है हर घर से कहीं
शायद जानवरों में वह अब शरम बोता है।

राम-कृष्ण, नानक, पैगंबर, ईसा सब चुप हैं
उनके भक्तों के इस देश में अब धरम रोता है।

1 comment:

कविता रावत said...

सच घरों में संस्कार अब कहाँ!
बहुत सुन्दर सामयिक चिंतन भरी रचना।