मेरे मर जाने के बाद भी
ऐसा कुछ नहीं होगा
जो मैं चाहता रहा हूं
बरसों से।
मेरी आंखों में दौड़ रहा है
इन दिनों लगातार जो रीतापन
यह हृदय की स्पंदनों में
बरसों से छुपा था
यह अलग बात है
कि तुम सब बेखबर थे।
मेरी मौत
पता नहीं कितनी नयी बातों को
जन्म देगी
दोस्त/दुश्मन के शिनाख्त की
एक बिल्कुल नयी तहजीब
तुम्हें बताएगी।
लेकिन इससे पहले
जरूरी है कि तुम ख़ुद को पहचानो।
यही बात तुमसे नहीं होगी।
दरअसल साथी,
ख़ुद को पहचानने के लिए
ज़रूरी है ख़ुद से जिरह करना
और जब भी करोगे तुम ख़ुद से जिरह
अपने को पाओगे
मेरे क़त्ल की साजिश में शरीक।
साथी,
यह काली रात
और गहराती जा रही है।
सुबह की उम्मीद में
जगा रहना चाहता हूं मैं
पर तुम्हारे भीतर जो डर
गहराया है
उसे दूर करने के लिए
बेहद ज़रूरी है कि मैं मर जाऊं।
शायद मेरा मरना
तुम्हारे भीतर एक नया इनसान गढ़ सके।
कल तुम्हारा जन्मदिन है
तुम्हारे इस जन्मदिन पर मैं
अपनी ज़िंदगी
तुम्हें दे देना चाहता हूं।
मेरे अक्षरों से उगेंगे अगर
लाल रंग
उसे सिंदूर की तरह लगा लेना।
बड़ी खूबसूरत लगती हो तुम,
तुम्हारी हंसी, तुम्हारी बोली
तुम्हारा रूठना, तुम्हारा रोना
तुम्हारा गुस्साना, तुम्हारा...
तुम्हारे भीतर जो कुछ भी है
वाकई, सब बहुत प्यारा है
और जब भी
तुम्हारे भीतर देखता हूं
वहां मेरी आकृति भी दिखती है
जो पूरी बेशर्मी के साथ
तुम्हारे भीतर बैठी है
और तुम उसे बेतरह प्यार कर रही हो।
ऐसे में मेरा अस्तित्व नंगा होता है।
और अपनी नंगई से घबराकर
मैं सचमुच मर जाना चाहता हूं।
गर मेरा मर जाना यह साबित कर सके
कि सचमुच मैं ज़िंदा आदमी था
तो मुझे, मर ही जाना चाहिए
मेरी आंखों में तुम तैर रही हो
मेरी रगो में तुम दौड़ रही हो
मेरे विचारों को पापा का प्यार
रौंद रहा है
और मेरी मृत्यु के रास्ते में
मेरा डर खड़ा है
पापा और तुम्हारा रूप लिये हुए।
3 comments:
बहुत अच्छा है अनुराग भाई. क्या बात है. ग़ज़ब.
अति उतम.....
एक एक लफ्ज़ अपने में अपनी बात कहता है ..बेहद खूबसूरत रचना पढने को मिली ..बहुत बहुत शुक्रिया अनुराग जी ..
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