"जिस दिन उसे फांसी लगी उसकी कोठरी से उसी दिन लेनिन की एक किताब बरामद हुई थी जिसका एक पन्ना मोड़ा हुआ था देश की जवानी को उसके आखरी दिन के मोड़े हुए पन्ने से आगे बढ़ना है।"
-पाश
भगत सिंह और पाश की शहादत की तारीख़ एक ही है पर वर्ष अलग। वैसे, पंजाबी कवि पाश अपने जीवनकाल में क्रांतिकारी देशभक्त भगत सिंह को बेहद पसंद करते रहे होंगे, इसमें शक़ नहीं। 23 मार्च 1982 को पाश ने भगत सिंह को कुछ यूं याद किया था :
उसकी शहादत के बाद बाक़ी लोग
किसी दृश्य की तरह बचे
ताज़ा मुंदी पलकें देश में सिमटती जा रही झाकी की
देश सारा बचा रहा बाक़ी
उसके चले जाने के बाद
अपने भीतर खुलती खिड़की में
लोगों की आवाज़ें जम गईं
उसकी शहादत के बाद
देश की सबसे बड़ी पार्टी के लोगों ने
अपने चिहरे से आंसू नहीं, नाक पोंछी
गला साफ़ कर बोलने की
बोलते ही जाने की मशक की
उससे संबंधित अपनी उस शहादत के बाद
लोगों के घरों में, उनके तकियों में छिपे हुए
कपड़े की महक की तरह बिखर गया
शहीद होने की घड़ी में वह अकेला था ईश्वर की तरह
लेकिन ईश्वर की तरह वह निस्तेज न था।
3 comments:
शहीद होने की घड़ी में वह अकेला था ईश्वर की तरह
लेकिन ईश्वर की तरह वह निस्तेज न था।
अद्भुत!
एक क्रांतिकारी के बारे में क्रांतिकारी कवि ऐसे ही लिखता है. यह कविता यहाँ देकर अच्छा किया.
वाह ! कमाल. कहीं कुछ झकझोर गई. अद्भुत. बहुत बहुत शुक्रिया भाई ....
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