जिरह पढ़ें, आप अपनी लिपि में (Read JIRAH in your own script)

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जिरह करने की कोई उम्र नहीं होती। पर यह सच है कि जिरह करने से पैदा हुई बातों की उम्र बेहद लंबी होती है। इसलिए इस ब्लॉग पर आपका स्वागत है। आइए,शुरू करें जिरह।
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Sunday, April 20, 2008

टेक केअर ऑफ माई आइज़

यह एसएमएस मुझे मेरे बेहद करीबी एक साथी ने भेजा। लघुकथा के कलेवर का यह एसएमएस मनुष्य की मानसिक बुनावट की जटिलताओं की ओर ध्यान खींचता है। इनसान जब ख़ुद को निरीह पाता है, तो वह सबसे घुल-मिल कर रहता है और दूसरों से सहयोग की भी अपेक्षा करता है। उसे अपना दुख सबमें नज़र आता है और सबका दुख ख़ुद में महसूस करता है। पर जैसे ही उसकी स्थिति मजबूत होती है, वह अपनी पुरानी ज़िंदगी भूल जाना चाहता है। निरीह और लाचार तमाम लोग उसे अब बोझ लगने लगते हैं। तो पढ़ें इस एसएमएस को जो मनुष्य के त्याग और स्वार्थ की पराकाष्ठा को दिखला रहा है :

There was a blind boy, who used to
hate every one except his girlfriend.
He always used to say that l'll marry u
if i could see!! Suddenly 1 day someone
donated him eyes n then when he saw
his glfriend, he was astonished to see
that his glfriend was also blind!
His glfriend then asked
"WILL U MARRY ME NOW?
he simply refused....
his glfriend went away saying...
"JUST TAKE CARE OF MY EYES."

3 comments:

Udan Tashtari said...

बहुत मार्मिक है. किसी और रुप में इसे सुना था आपने याद दिलाया-बहुत आभार.

Dr. Chandra Kumar Jain said...

आँख खोलने वाली प्रस्तुति.

इंसान के दोहरेपन के हारने
और दोगलेपन के गलने के बगैर
खुली आँखों से नग्न सत्य का
साक्षात्कार और स्वीकार संभव नहीं है.
ये उसकी सीमा है और कसौटी भी !

रश्मि शर्मा said...

शयद इन्सान इतना ही स्वार्थी होता है