जिरह पढ़ें, आप अपनी लिपि में (Read JIRAH in your own script)

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जिरह करने की कोई उम्र नहीं होती। पर यह सच है कि जिरह करने से पैदा हुई बातों की उम्र बेहद लंबी होती है। इसलिए इस ब्लॉग पर आपका स्वागत है। आइए,शुरू करें जिरह।
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Wednesday, January 16, 2008

बदलता पर्यावरण


ओ साहेब,
इन जंगलों को मत काटो
क्योंकि
जब हम हताश होते हैं
इनका संगीत हममें
जीवन डाल देता है
जब हम भूखे होते हैं
यही जंगल
हमारे साथ होता है
तुम महसूस कर सकते हो साहेब?
कि इनका रोना
हमारे भीतर
कैसा उबाल पैदा करता होगा!

तुम ठहरे बड़े शहर के
बड़े शहराती
हम तो जाहिल, गवांर और देहाती
पर साहेब,
कर रहे हैं प्रार्थना
तुम इन जंगलों में
जहां चाहो घूम आओ
पर हमारी आंखों में
कांटे न उगाओ।

साहेब!
हम पढ़े-लिखे लोग नहीं हैं
पर शांति
हमें भी पसंद है
तुम क्यों चाहते हो दंगा
जंगल और पहाड़ों को कर नंगा।

देखना साहेब!
जब जंगल खत्म हो जाएंगे
हम तुम्हारे शहर आएंगे
और तुम्हारा जीना
दूभर हो जाएगा।

3 comments:

Manoj Sinha said...

Hum shahar? mein to aa hi chuke hain aur shahariyon ka jeena doobhar kar hi rakha hai

Saurabh Suman said...

Hi Bhaiya kaise hain. Humne bhi blog banaya hai. zara ek nazar daal lijiye. accha lage to link bhi de dijiyega.
Saurabh Suman
i-next
Kanpur

Saurabh Suman said...

Blog ka naam batana bhool gaya. saurabhcampus.blogspot.com