जब कंटीली झाड़ियों में
उग आता है
अचानक कोई फूल
मुझे लगने लगता है कि
जिंदगी की यातनाएं
कम हुई हैं
पिता के फटे हुए कुर्ते
और बहन की
अतृप्त इच्छाओं से
आहत मन
जब सुनता है
मंदिर और मसजिद के टूटने की बात
तो बेचैनियां बढ़ जाती हैं
आज की तारीख में
प्रासंगिक नहीं रह गया
कि सोचूं
प्रेमिका के काले घुंघराले केश
कितने सुंदर हैं
और एक दूसरे के बिना
हम कितने अकेले
लेकिन इन सब के बावजूद
जब मेरे लगातार हंसते रहने से
दादी की मोतियाबिंदी आंखों में चमक
बढ़ जाती है
तो मेरा दर्द
खुद-ब-खुद
कम हो जाता है।
Wednesday, January 16, 2008
दर्द से दवा तक
पेशकश : अनुराग अन्वेषी at 12:16 AM
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2 comments:
A scholar has said somewhere : Prose- The words in their best order.
Poetry-The best words in their best order.
Liked so much your best words in their best order.
lekin kya kavita ke alava kuch aur bhi milega yaha???
Achhi kavita hai
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