खिले-खिले, पर घुटे-घुटे
तने-तने, पर झुके-झुके
मिले हुए, पर कटे-कटे
ये कैसे लोग हैं मेरे यारो
साफ-साफ, पर धुआं-धुआं
भेड़चाल और हुआं-हुआं
हंसी-हंसी में जलाभुना
यह कैसा वक्त है मेरे यारो
बहुत-बहुत, पर जरा-जरा
डरा-डरा, पर हरा-भरा
जगा-जगा, पर मरा-मरा
यह कैसा रूप है मेरे यारो
प्यार-प्यार में मारो-काटो
रौद्र रूप भी और तलवे चाटो
तारीफ के बजाए डांटो-डांटो
यह कैसा शख्स है मेरे यारो
चापलूसी में है सना-सना
जगह-जगह है, घना-घना
तू कर इसे अब मना-मना
यही है वक्त का तकाजा यारो
Thodi si Bewafai....
4 years ago
4 comments:
एकदम सटीक...यही वक्त का तकाजा यारों.
अच्छा चित्रण है...बढ़िया कविता....बधाई
िजरह का स्कऱॉल काफी तेज चल रहा है. इसे थोड़ा धीमा कर दें अच्छा रहेगा।
बढ़िया चित्रण किया है आज के हालात का कविता के माध्यम से...
Post a Comment