जिरह पढ़ें, आप अपनी लिपि में (Read JIRAH in your own script)

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जिरह करने की कोई उम्र नहीं होती। पर यह सच है कि जिरह करने से पैदा हुई बातों की उम्र बेहद लंबी होती है। इसलिए इस ब्लॉग पर आपका स्वागत है। आइए,शुरू करें जिरह।
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Monday, September 15, 2008

हादसों में हमारा भी हाथ

"यह बात एक बार फिर साबित हुई कि 13 की संख्या कितनी अशुभ होती है। और उसपर दिन अगर शनिवार हो तो कहने ही क्या। करैला ऊपर से नीम चढ़ा। याद करें, वह 13 सितंबर, दिन शनिवार की ही शाम थी, जब दिल्ली में सीरियल धमाके हुए। 20 लोग मौत के हवाले हुए और तकरीबन 150 लोग भयंकर जख्मी।"

स तरह की कोई भी स्क्रिप्ट हमारे बीच राहत लेकर नहीं आती। बल्कि सच तो यह है कि ऐसा या इस जैसा कोई भी एक्स्प्रेशन वह काम करता है जो धमाके के जरिये आतंकवादी करना चाहते थे और नहीं कर सके। यानी, ऐसी स्क्रिप्ट से हम आतंकवादियों के अधूरे मिशन को उसकी मंजिल तक पहुंचाते हैं।

ऐसे मौकों पर एक्सक्लूसिव के नाम पर जो सनसनी पैदा की जाती है, सबसे तेज की दौड़ में जो हड़बड़ी दिखाई जाती है, वह लोगों का इत्मीनान छीन लेती है। ऐसी सनसनी की जगह सजगता पैदा करने की कोशिश हो, तो वाकई कोई बात बने।


हम जिस छोटी-सी पट्टी पर हेल्पलाइन नंबर चलाते हैं, सचमुच उसका दायरा बढ़ना चाहिए। और जितने बड़े दायरे में हंगामे को समेटते हैं उसे समेट कर पट्टी में लाने की जरूरत है। ऐसा नहीं कि घटनास्थल पर हमारे कैमरे न जाएं। हमारे रिपोर्टर वहां से रिपोर्टिंग न करें। बिल्कुल करें। घटनास्थल से रिपोर्टिंग कर वहां के बारे में बताना, बेशक बेहद जरूरी है। पर मीडिया को भाषा की उस शक्ति की भी समझ होनी चाहिए, जो किसी थके-हारे को शक्ति भी देती है।

फर्ज करें, आपके पड़ोसी के घर में किसी की असामयिक मौत हो गई। आप उसके घर जाते हैं तो इसलिए कि आपके भीतर उससे अपनत्व का कोई रिश्ता है। उसे आप सांत्वना देते हैं। सच बोलने के नाम पर यह नहीं कहते कि क्या यार, जिसे मरना था मर गया, अब कितनी देर तक टेसुए बहाएगा।

मतलब यह कि हम अपने समाज से अपनत्व का वह रिश्ता भूलते जा रहे हैं। भाषा की वह समझ खोते जा रहे हैं, जिससे कोहराम के समय भी राहत दी जा सकती है। अपने उस दायित्व को भी नजरअंदाज कर रहे हैं, जिसे निभाने से खौफ की उम्र बेहद छोटी हो जाती।

5 comments:

MANVINDER BHIMBER said...

exclusiv shabad media ke shabdkosh ka exclusiv sabad hai

Udan Tashtari said...

प्रभावी एवं विचारणीय आलेख.

Pooja Prasad said...

sahi kah rahe hain aap. news ka "angle" nikalne ke chakkar me media me is tarj ke nihaayat gair-zimedaarana kaam hote rehte hai. jin par rokthaam ki zarurat hai. visheshkar samvedensheel mamlon me.

pallavi trivedi said...

achcha aalekh hai...

rakhshanda said...

बिल्कुल सही कहा आपने, काश और लोग भी आपकी बात समझ सकें...