जिरह पढ़ें, आप अपनी लिपि में (Read JIRAH in your own script)

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Monday, March 10, 2008

बोये जाते हैं बेटे

नंदकिशोर हटवाल जी की यह कविता मुझे पढ़वाई थी मेरे साथी मञ्जुल ने। उस वक्त के बाद मैंने न जाने कितने लोगों को और कई-कई बार यह कविता सुनाई और पढ़वाई। हटवाल जी को मैं निजी तौर पर नहीं जानता। उनके बारे में मेरे पास कोई जानकारी नहीं। सचमुच यह मेरा छोटापन है कि जिस कविता से इतना लगाव हो, उसके रचनाकार के बारे में आप न जानें। पर उन्हें मैं उनकी इस अद्भुत रचना के लिए हृदय से धन्यवाद देता हूं।


बोये जाते हैं बेटे
और उग आती हैं बेटियां

खाद-पानी बेटों में
और लहलहाती हैं बेटियां

एवरेस्ट की ऊंचाइयों तक ठेले जाते हैं बेटे
और चढ़ आती हैं बेटियां

कई बार गिरते हैं बेटे
और संभल जाती हैं बेटियां

भविष्य का स्वप्न दिखाते बेटे
यथार्थ दिखाती बेटियां

रुलाते हैं बेटे
और रोती हैं बेटियां

जीवन तो बेटों का है
और मारी जाती हैं बेटियां

- नंदकिशोर हटवाल

7 comments:

परमजीत सिहँ बाली said...

सच मे बहुत बेहतरीन रचना है।

Ek ziddi dhun said...

itni maari jaati hain, phir bhi, kambakht har taraf apna hak mangti dikhai deti hain...

अमिताभ मीत said...

बहुत बढ़िया है अनुराग भाई.. शुक्रिया

manjula said...

क्‍या करें ढीठ जो हैं हम. और यह ढिठाई सर आंखों पर

Reetesh Gupta said...

बहुत अच्छी है आपकी कविता ...और उतनी ही सच्ची भी...बधाई

priyankas said...

मन को छूनेवाली कविता है यह.

Sheetal said...

badiya...