आज पता नहीं क्यों, सुबह से ही मन काफी अशांत था। बचपन की तमाम यादें सिरहाने आकर बैठ गयी थीं। उन दिनों में लौटने को जी मचल-मचल जा रहा था। पर यह मुमकिन न था। इन सब के बीच मां बेतरह याद आती रही। जाहिर है मेरी बेचैनी दुनी हो गई। क्या करता, अपनी पुरानी कविताएं पढ़ने लगा। इसी बीच मां को याद कर लिखी कविता मेरे सामने आ गई। हालांकि वह कविता इस ब्लॉग पर काफी पहले डाल चुका हूं, पर एक बार फिर से इसे दूसरे रूप में आपके सामने रखने की चाह हुई।
Thodi si Bewafai....
4 years ago
3 comments:
शब्दों में करना कठिन माता का गुणगान।
माँ की गोदी में मिले सुख भी स्वर्ग समान।।
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
मुश्किलों से भागने की अपनी फितरत है नहीं।
कोशिशें गर दिल से हो तो जल उठेगी खुद शमां।।
www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail.com
बहुत भावुक कर देने वाली कविता है ...माँ की गोद का जादू कब भूल पाता है मन ..
मैं पहले भी इस कविता को पढ़ चुका था लेकिन इस नए रूप में सुनकर अच्छा लगा। आपका अंदाज़ प्रभावी लगा... भावों के अनुरूप आवाज़ में उतार-चढ़ाव लाया है।
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