श्लील और अश्लील पर बहस कोई नई बात नहीं है। जरूरी नहीं कि जो चीज एक की निगाह में अश्लील हो, उसे दूसरा भी उसी रूप में देखे। अमूमन, नंगेपन को हम बड़ी आसानी से अश्लील कह जाते हैं। पर देखने की जरूरत यह है कि किसी का नंगापन उसकी कोई मजबूरी तो नहीं। इसके बाद ही हमें किसी निष्कर्ष पर पहुंचना चाहिए। कोई स्त्री या पुरुष अपने कमरे में नंगा लेटी है/लेटा है - हमें इसे अश्लील कहना चाहिए या उस निगाह को जिसने उसके कमरे में झांकने की कोशिश की?
- क्या चापलूसी करना अश्लील नहीं है?
- किसी गलत को सही कह उसे प्रोत्साहित करना अश्लील नहीं है?
- हम ग़ज़ल लिखें और शीर्षक दें गज़ल (गजल लिखें तब तो चलेगा), तो क्या यह अश्लील नहीं है?
.......
कहने का मतलब यह कि अगर हम छांट-छांट कर निकालें तो हमारे कदम-कदम पर अश्लीलता बिछी मिलेगी। और अगर ऐसा है और हम उसे आसानी से नजरअंदाज कर बर्दाश्त किये चले जाते हैं तो क्या यह अश्लील नहीं है?
साथियो, क्या सोचते हैं आप। क्या है श्लील और क्या है अश्लील? कृपया हमें बतायें।
5 comments:
आप ने कहा तो सही है। वही बाबा आइंस्टाइन की सापेक्षता। पर आप की श्लील अश्लील की परिभाषा विकट बहुत है।
सही कहा दिनेश जी ने.. सापेक्षता.
Main bhi sri dineshji aur ranjanji ki ray se sahmat hun. bhai, aapne paribhasha ka dayara itna vyapak kar diya ki kuchh bhi spast nahi.
बिल्कुल सही!! मौके की नजाकत है और नजर नजर का फेरा!!
अश्लीलता के नाम पर तो ढ़रों वर्जनाएं और उन्हें जारी करने वाले भीहद दरजे के अश्लील हैं।
Post a Comment