जिरह पढ़ें, आप अपनी लिपि में (Read JIRAH in your own script)

Hindi Roman(Eng) Gujarati Bangla Oriya Gurmukhi Telugu Tamil Kannada Malayalam

 
जिरह करने की कोई उम्र नहीं होती। पर यह सच है कि जिरह करने से पैदा हुई बातों की उम्र बेहद लंबी होती है। इसलिए इस ब्लॉग पर आपका स्वागत है। आइए,शुरू करें जिरह।
'जिरह' की किसी पोस्ट पर कमेंट करने के लिए यहां रोमन में लिखें अपनी बात। स्पेसबार दबाते ही वह देवनागरी लिपि में तब्दील होती दिखेगी।

Tuesday, May 13, 2008

बता री सजनी


बिन मौसम मुझे याद तेरी क्यों आई
हां री सजनी, अब हो गई तेरी सगाई

न कर नम अपनी ये प्यारी-प्यारी आंखें
हां री सजनी, दुआएं लिए खड़ी है माई

चल उठ, छोड़ अतीत देख अब सिर्फ आगे
हां री सजनी, मत कह अब दुहाई है दुहाई

मत कोस किसी को, नहीं बदलेगा कुछ भी
हां री सजनी, अब न बाप सुनेंगे न भाई

मेरी सांसों की हर आहट, भर रही है घबराहट
बता री सजनी, ये दिल क्यों निकला हरजाई

2 comments:

Udan Tashtari said...

बतायें तो बताईयेगा!! :)

राजीव रंजन प्रसाद said...

अच्छी रचना है...

***राजीव रंजन प्रसाद