जिरह पढ़ें, आप अपनी लिपि में (Read JIRAH in your own script)

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Friday, May 16, 2008

दहलाने वाली दृष्टि

आज चोखेर बाली पर सुरेश जी का 'दहल' जाना पढ़ा और दूसरों को 'दहलाने की उनकी कोशिश' भी देखी। सुरेश जी कितने संवेदनशील हैं इस बात का पता इससे ही चल जाता है कि उन्होंने इतनी भयंकर वारदात को महज 'घटना' माना है। आपने लिखा है 'यह नारी अशिक्षित नहीं है. उसने अंग्रेजी में एम् ऐ किया है. ' सुरेश जी, शिक्षित होने का संबंध जो लोग डिग्रियों से तौलते हैं, मुझे उनके शिक्षित होने पर संदेह होने लगता है। आपको ढेर सारे ऐसे लोगों के उदाहरण अपने समाज में मिल जाएंगे, जिन्होंने स्कूल-कॉलेज का चेहरा तक नहीं देखा, पर उनकी शालीनता और उनके संस्कार के सामने डिग्रीधारी भी बौने नजर आने लगते हैं।

आपने लिखा 'उसके पिता ने अपनी इस एकलौती बेटी को बेटों जैसा प्यार दिया. शिक्षा पूरी होने पर उसे एक स्कूल में अध्यापिका की जॉब दिला दी.'


दो-तीन बातें इन दो वाक्यों पर। पहली बात तो यह कि उस पिता ने सिर्फ प्यार दिया। यह आकलन आपका है क्या कि बेटों जैसा प्यार दिया? जो परिवार अपनी बेटी को एमए तक की पढ़ाई करने का अवसर दे, वह दकियानूसी नहीं हो सकता। दकियानूस दृष्टि यह है कि हम उसे कहें कि उसे बेटों जैसा प्यार दिया। खतरनाक बात यह कि अध्यापक पिता ने अपनी बेटी को पढ़ा तो दिया पर उसके भीतर समझ पैदा नहीं कर सका, संस्कार पैदा नहीं कर सका। और तो और आपके मुताबिक 'शिक्षा पूरी होने पर उसे एक स्कूल में अध्यापिका की जाब दिला दी।' गौर करें सुरेश जी, वह लड़की इतनी भी शिक्षित नहीं थी कि एक छोटी-सी जॉब पा सके। आपके मुताबिक, उसके टीचर पिता ने उसे जॉब दिलाई थी। एक दुखद बात और कि जो टीचर अपने घर के बच्चे को सही और गलत के अंतर को समझ पाने की दृष्टि नहीं दे सका, वह समाज को क्या सिखलाएगा? और आखिर में एक कुतर्क, अगर बाप ने बेटी को बेटों जैसा प्यार दिया, तो बेटी ने भी उस प्यार का सम्मान करते हुए बेटों जैसा काम किया। बहरहाल, अपराध न बेटा (पुरुष) करता है, न बेटी (स्त्री)। यह आपको भी समझना चाहिए।


आपने लिखा 'मैंने भी जब इस के बारे में सुना... '। पर आपने हमें जो सुनाया, वह तो लाइव कमेंट्री की तरह है। लगा ऐसा कि हत्याएं हो रही हैं और आप वहां खड़े होकर बारीक तरीके से वारदात के हर स्टेप को अपनी डायरी में दर्ज कर रहे हों। दरअसल, आपने इस वारदात को अपनी ओर से रोचक बनाने की अथक कोशिश की है। हां सुरेश जी, अपराध की प्रकृति ही ऐसी होती है कि वह रोचक नहीं हो सकता, वह घृणित ही रहेगा। उसे रोचक अंदाज में पेश करने की कोशिश उससे भी ज्यादा घृणित। ऐसी किसी वारदात को स्त्री-पुरुष से जोड़कर देखने वाली दृष्टि इस समाज के लिए कितनी खतरनाक है, इस पर अगर आप विचार कर सकें (मुझे संदेह है) तो करें। और फिर बताएं कि यह अपराध किसी स्त्री ने किया या किसी पुरुष ने?

2 comments:

Rajesh Roshan said...

आपने सब कुछ कह दिया. अच्छा विश्लेषण है

Unknown said...

कृपया चोखेरवाली पर आपकी पोस्ट पर मेरी टिप्पणी देखें.