जिरह पढ़ें, आप अपनी लिपि में (Read JIRAH in your own script)

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Saturday, March 9, 2013

इस बहादुर बेटी पर देश कब ध्यान देगा?

रोम चानू शर्मिला पर अदालत ने आरोप तय कर दिया है और अब उन पर आत्महत्या की कोशिश का मुकदमा चलेगा। यह वाकई दुर्भाग्यपूर्ण है। उन्होंने 4 नवंबर 2000 को अपना अनशन शुरू किया था, इस उम्मीद के साथ कि 1958 से अरुणाचल प्रदेश, मेघालय, मणिपुर, असम, नगालैंड, मिजोरम और त्रिपुरा में और 1990 से जम्मू-कश्मीर में लागू आर्म्ड फोर्स स्पेशल पावर एक्ट (एएफएसपीए) को हटवाने में वह महात्मा गांधी के नक्शेकदम पर चल कर कामयाब होंगी। इरोम के इस अनशन के बीच केंद्र में एनडीए और यूपीए की सरकारें रहीं, पर किसी ने उनकी सुध नहीं ली। किसी ने उनसे उनकी मांगों पर बात करने की ईमानदार कोशिश नहीं की।

इरोम पर आरोप तय करते हुए जज ने कहा कि मैं आपका सम्मान करता हूं लेकिन देश का कानून आपको अपनी जिंदगी खत्म करने की अनुमति नहीं देता। ध्यान रहे कि इरोम ने बार-बार कहा है कि वह खुदकुशी करना नहीं चाहतीं। उनका प्रदर्शन अहिंसक है और एक आम आदमी की तरह जीवन वह भी जीना चाहती हैं। मुमकिन है कि जब आईपीसी की धारा 309 को स्वीकार किया गया होगा, दूर-दूर तक यह अंदेशा न रहा होगा कि कभी इसका इस्तेमाल शांतिपूर्वक जीवन जीने की लोकतांत्रिक मांग के खिलाफ भी करना पड़ सकता है। अपने ऊपर लगे आत्महत्या के इल्जाम से इनकार करते हुए और आरोप तय होने की प्रक्रिया के बीच इरोम ने यह भी भरोसा जताया कि सरकार उन्हें सुनेगी और एएफएसपीए हटाने की मांग मानेगी। इस पर अदालत ने कहा कि यह राजनीतिक प्रक्रिया है। पर सवाल उठता है कि यह कैसी राजनीतिक प्रक्रिया है जिसमें इरोम की बातों के लिए कोई जगह नहीं है?

दरअसल राजनीतिक नेतृत्व को वही मसले परेशान करते हैं जो सीधे-सीधे उसके हितों को नुकसान पहुंचा सकते हैं। यही वजह है कि जब अन्ना का अनशन शुरू होता है, तो सरकार बौखला जाती है। उसके मंत्री अपने-अपने मोर्चे पर जुट जाते हैं। यही हाल फिलहाल विपक्ष में बैठे लोगों का है जो केजरीवाल के पोल खोल का जवाब तोड़-फोड़ वाले अंदाज में देने लग जाते हैं। पर अपनी मांग पर दृढ़ता से अड़ी इरोम शर्मिला का 12 वर्षों से चला आ रहा अनशन इस पक्ष और विपक्ष को बेवजह और बेतुका लगता है जिस पर वे अपनी राय जताना भी जरूरी नहीं समझते।
 केंद्र सरकार ने इस बजट में निर्भया फंड की घोषणा की है। और राज्य सरकारों ने भी अपनी संवेदनशीलता साबित करने के लिए निर्भया के परिवार के हक में बहुत कुछ किया। निर्भया और इरोम के संघर्ष की तुलना एक झटके में बेमेल सी लग सकती है। पर इस तुलना से गुजरे बिना हम इरोम के संघर्ष को पूरी तरह नहीं समझ सकेंगे और उसे धारा 309 के चौखटे में कस कर देखने की चूक करते रहेंगे। निर्भया के साथ हुई वारदात की क्रूरता ने हम सब को आहत किया। महानगर में रहने वाले युवा यह सोचकर चिंतित हो गए कि इसी तरह हम भी रात आठ बजे शहर में घूमते हैं। अगर इस तरह की वारदात के खिलाफ आवाज नहीं उठाई गई, तो कल हममें से कोई भी ऐसे अपराधियों का शिकार हो सकता है। यही वजह है कि निर्भया के नाम पर महानगर के युवाओं ने आवाज बुलंद की। निर्भया कांड का पटाक्षेप आश्वासनों, आर्थिक मददों, कानून संशोधन का अध्यादेश और निर्भया फंड के रूप में सामने आया।

ठीक इसके उलट हमारे सिस्टम को इरोम नजर नहीं आती। इरोम का यह संघर्ष अपने लिए नहीं है बल्कि उनके इलाके के लोगों के लिए है जो बार-बार एएफएसपीए का शिकार हो रहे हैं। इरोम ने अपनी भूख हड़ताल तब की थी जब 2 नवंबर के दिन मणिपुर की राजधानी इंफाल के मालोम में असम राइफल्स के जवानों के हाथों 10 बेगुनाह लोग मारे गए थे। कहने का अर्थ यह नहीं कि इरोम की मांग पूरी तरह जायज है उसे आंख मूंदकर मान ही लेना चाहिए। लेकिन इस पर बात तो हो। इरोम की दृढ़ इच्छाशक्ति टूटे उससे पहले उसका सम्मान करते हुए सरकार को बातचीत का रास्ता निकालना चाहिए।

5 comments:

रविकर said...


मार्मिक दृष्टांत-
हमारी शुभकामनायें इस आयरन-लेडी के साथ हैं-

ZEAL said...

इस देश में बलिदानियों की क़द्र कहाँ हैं ?

Harihar (विकेश कुमार बडोला) said...

मामला कई कारणों से जटिलता ग्रहण करता गया। सशस्‍त्र बल विशेषाधिकार अधिनियम कई कारणों से जरुरी भी है। इरोम की आंखों देखी घटना के कारण उस परिक्षेत्र विशेष से इस कानून का हटाना ठीक है। परन्‍तु जम्‍मू एवं कश्‍मीर जैसे अन्‍य संवेदनशील स्‍थानों पर इसको हटा दिए जाने से परिणाम हैदराबाद, मुम्‍बई जैसे विस्‍फोटों के रुप में सामने आते रहेंगे। इसलिए मुद्दे की विभिन्‍न दृष्टिकोणों से पड़ताल अत्‍यन्‍त आवश्‍यक है। वैसे इरोम के साथ मेरी भी सद्भभावनाएं हैं। भगवान उन्‍हें सशक्‍त और संजीवित करे।

travel ufo said...

सच में बढिया ध्यान दिलाता आपका लेख इस आयरन लेडी की ओर

कविता रावत said...

इसे आम जन का दुर्भाग्य ही समझे ..बहुत दुखद है .....फिर तो उम्मीद की कोई न कोई किरण जरुर एक दिन निकलेगी और कभी न कभी सुबह जरुर होगी ...