जिरह पढ़ें, आप अपनी लिपि में (Read JIRAH in your own script)

Hindi Roman(Eng) Gujarati Bangla Oriya Gurmukhi Telugu Tamil Kannada Malayalam

 
जिरह करने की कोई उम्र नहीं होती। पर यह सच है कि जिरह करने से पैदा हुई बातों की उम्र बेहद लंबी होती है। इसलिए इस ब्लॉग पर आपका स्वागत है। आइए,शुरू करें जिरह।
'जिरह' की किसी पोस्ट पर कमेंट करने के लिए यहां रोमन में लिखें अपनी बात। स्पेसबार दबाते ही वह देवनागरी लिपि में तब्दील होती दिखेगी।

Monday, August 19, 2013

मुट्ठी भर प्यार, हाशिए पर नफरत

प्यार क्या है
एक अदृश्य ताकत?
जो आपको खड़ा होने की हिम्मत देता है खिलाफ बह रही तमाम हवाओं के खिलाफ
जो आपको सिखाता है कि जीना है तो मरने के लिए रहो हरदम तैयार
और आप मेमने को खाने पर अड़े भूखे शेर से भी लड़ने को हो जाते हैं खड़े
जब तक यह अदृश्य ताकत आपके भीतर बहती है
तेज से तेज बहाव वाली नदी, बड़े से बड़ा समुद्र और ऊंचे से ऊंचा पहाड़
आपको अपने कदमों पर लोटता नजर आता है
आप डंके की चोट पर कहते हैं कि अभी सूरज को नहीं दूंगा डूबने

प्यार क्या है
एक अदृश्य बेड़ी?
जो अनुकूल बहती हवाओं में भी सूंघती फिरती है तरह-तरह की आशंकाएं
जो पिंजरे में रहने की देती है हरदम नसीहत और उड़ने से रोकती है आपको खुले आकाश में,
और तब आप अपने वटवृक्ष होने की संभावनाओं को लतर के पौधे में बदल देते हैं
जब तक यह अदृश्य बेड़ी बांधे होती है आपके पांव
आप सिर्फ जीना चाहते हैं, जीने के लिए भूल जाते हैं मरने का दांव
और फिर हालात कुछ ऐसे बनते हैं कि छोटी नाली लगती है विकराल नदी,
राई भी नजर आते हैं पहाड़
डंके की चोट पर कहना तो दूर, आप घुटने के बल रेंगने को होते हैं मजबूर

नफरत क्या है
अदृश्य चारदीवारी?
जो आपको देती है अपनी बनाई मान्यताओं के साथ जीने की इजाजत।
जो आपके हक में उठाती है लाठी और श्रेष्ठतम बताती है आपकी कदकाठी।
जो हांकती है आपको आस्था की लाठी से और बुनती है आत्ममुग्धता का मकड़जाल
जिससे बाहर आते ही आपको अपना अस्तित्व खाक होता नजर आता है
जब तक घिरे होते हैं आप इस चारदीवारी से
नई रोशनी आपको गैरवाजिब हस्तक्षेप लगती है
और आप पूरी ताकत झोंक देते हैं
कि कोई बाहर की रोशनी आकर आपके अंधेरे को रोशन न कर सके।
क्योंकि आपको अंधेरा पसंद है,
दरअसल यही अंधेरा नफरत की निगाह में उसका उजाला है।

नफरत क्या है
अंधा प्यार?
जो आपसे सही या गलत की पहचान दुराग्रही आंखों से करवाता है।
जो सम्मान की रक्षा के नाम पर सम्मान का गला घोंट देने से भी नहीं करता गुरेज।
और आपको पता भी नहीं चलता कि कब आप इंसानियत के कस्बे से निकल हैवानियत के जंगल में अपना ठौर बना चुके हैं
जब तक डूबे होते हैं आप इस अंधे प्यार में
आदिम उसूल और बासी विचारों का लबादा आपको लगता है सबसे प्यारा
और आप उसे जायज ठहराने के लिए दूसरों पर लादने तक की कोशिश करते हैं
ऐसे में जब कोई आपके पैबंदों को दिखाने की ईमानदार कोशिश करता है
वह दुनिया, देश और समाज का सबसे बेईमान और खतरनाक आदमी लगता है

इस तरह अगर देखें तो एक सच यह भी दिखता है
कि ऐसे किसी भी एक तत्व से जीने का भ्रम बनाया जा सकता हो भले
जीवन रचा नहीं जा सकता
यही वजह है कि जो लोग करते हैं नफरत से नफरत और प्यार से प्यार
या फिर जो प्यार से करते हैं नफरत और नफरत से करते हैं प्यार
वे रच नहीं पाते कोई प्यारा सा, सुंदर-सलोना संसार
इसीलिए मैं पालना चाहता हूं अपने भीतर मुट्ठी भर प्यार
और अपने हाशिये पर रखना चाहता हूं थोड़ी सी नफरत
ताकि जिंदा रहे मेरे भीतर का इनसान
जो बसा सके प्यार से भरी-पूरी एक दुनिया।

2 comments:

Anonymous said...

Beshak Tarife kaabil hain Apka blog

कविता रावत said...

प्यार-नफरत की कसौटी पर कसी सार्थक रचना ..सच है यदि एक तरफ मुट्ठी भर प्यार है तो दूसरी ओर हाशिये पर नफरत ..