जिरह पढ़ें, आप अपनी लिपि में (Read JIRAH in your own script)

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जिरह करने की कोई उम्र नहीं होती। पर यह सच है कि जिरह करने से पैदा हुई बातों की उम्र बेहद लंबी होती है। इसलिए इस ब्लॉग पर आपका स्वागत है। आइए,शुरू करें जिरह।
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Sunday, April 11, 2010

आइए, छलें खुद को

मोह जब हो भंग, तो आदमी खुद को ठगा सा महसूस करता है। उसे लगता है कि वह अब तक खुद को छल रहा था। वैसे खुद को छलने वाले लोग भी होते हैं, आत्ममुग्ध, आत्मरति के शिकार। पर जब वाकई दूसरों के हाथों छले जाएं, तो उनकी पीड़ा मुखर हो जाती है। पीड़ा के ऐसे क्षणों में आखिर आदमी क्या करे, कहां जाए, किससे कहे...। जाहिर है कहीं जाने की जरूरत नहीं। आइए एक गीत सुनें...

4 comments:

Jandunia said...

खुद पर भरोसा रखना जरूरी है।

Shekhar Kumawat said...

बहुत अच्छी प्रस्तुति
bahut khub

http://kavyawani.blogspot.com/

shekhar kumawat

Rahul Singh said...

चाहे भटकता ही क्‍यों न रहे, मन अपने पसंद की गलियों में घूमता रहे, तभी सुहाना सफर तय होता है.

Nilay Priyadarshi said...

अनुराग...
आज मैंने तुम्हारा ब्लॉग पढ़ा...
बहुत ख़ुशी हुई !!
बहुत अच्छी कोशिश की है तुमने ..उम्मीद करती हूँ की तुम इसे आगे भी जारी रखोगे...

- नीलम वर्मा