मोह जब हो भंग, तो आदमी खुद को ठगा सा महसूस करता है। उसे लगता है कि वह अब तक खुद को छल रहा था। वैसे खुद को छलने वाले लोग भी होते हैं, आत्ममुग्ध, आत्मरति के शिकार। पर जब वाकई दूसरों के हाथों छले जाएं, तो उनकी पीड़ा मुखर हो जाती है। पीड़ा के ऐसे क्षणों में आखिर आदमी क्या करे, कहां जाए, किससे कहे...। जाहिर है कहीं जाने की जरूरत नहीं। आइए एक गीत सुनें...
Thodi si Bewafai....
4 years ago
4 comments:
खुद पर भरोसा रखना जरूरी है।
बहुत अच्छी प्रस्तुति
bahut khub
http://kavyawani.blogspot.com/
shekhar kumawat
चाहे भटकता ही क्यों न रहे, मन अपने पसंद की गलियों में घूमता रहे, तभी सुहाना सफर तय होता है.
अनुराग...
आज मैंने तुम्हारा ब्लॉग पढ़ा...
बहुत ख़ुशी हुई !!
बहुत अच्छी कोशिश की है तुमने ..उम्मीद करती हूँ की तुम इसे आगे भी जारी रखोगे...
- नीलम वर्मा
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