प्यारी बेटा,
कैसी है तू? पढ़ाई-लिखाई का क्या हाल है? समय का इक्वल डिस्ट्रिब्यूशन किया है न? देख बेटा, पढ़ाई के साथ मस्ती भी बेहद जरूरी है। जितनी ईमानदारी से पढ़ती है उतनी ईमानदारी के साथ मस्ती भी कर। किसी एक चीज पर पिले रहने से मुकाम तो हासिल कर लेगी, पर पर्सनैलिटी नहीं। इसलिए जरूरी है बेटा कि मस्ती और पढ़ाई दोनों साथ-साथ हों। जिस फील्ड को जब जैसी जरूरत हो, उसे उतना ही वक्त दो।
जानती है बेटा, अभी रात के २ बज रहे हैं। दरअसल, मैं रात में देर से लौटा हूं। तेरी ममा ने बताया कि तेरे से लंबी चैट हुई उनकी। सुना कि सैटरडे को तेरा शेड्यूल बहुत टाइट था। बेहद थकी हुई थी तू। क्यों इतना स्ट्रेन लेती है रे, एकाध क्लास मिस ही कर जाती तो क्या आफत आ रही थी? पगली।
मुझे पता है कि संडे की सुबह तू देर से उठेगी। उठेगी और लैपटॉप से चिपक कर मेल चेक करेगी। इसीलिए अभी इस खत को मेल कर दूंगा। अरे बेटा! कल तो वैलंटाइन्स डे है। बता-बता, क्या प्लानिंग है तेरी? अभी तक किसी ने मेरी बेटी को प्रपोज किया या नहीं… या मेरी बेटी ने किसी को...?
याद है तुझे... जब तू नर्सरी या प्रेप में थी... तू बेहद परेशान रहती थी कि तेरे चेहरे का कलर ब्राउन क्यों है? क्या तुझे आज भी तेरा ब्राउन कलर परेशान करता है? ना, बेटा ना। ब्राउन कलर हो या वाइट - अगर चेहरे पर ताजगी न हो, उत्साह का कोई रंग वहां न हो, तो वह चेहरा बेजान लगता है। और तू तो शुरू से हर मामले में उत्साही रही है। चाहे काम मुश्किल हो या आसान, छोटा हो या बड़ा – तू उसे लगन से करती रही है। तेरे भीतर यह जो गुण है न – बेशक इसे तूने अपनी ममा से लिया है – यह तुझे भीड़ में भी एक पहचान देता है, तुझे बिल्कुल डिफरेंट लुक देता है।
बेटा, तू अब बड़ी हो चली है। तुझमें संवेदना जितनी गहरी है, विचार उतने ही गंभीर।
इसीलिए तेरे सामने मैं सिर्फ स्थितियां रखा करता हूं, फैसले का अधिकार तुम्हारा होता है। पर बेटा, एक बात ध्यान रखना कि कुछ फैसले ऐसे होते हैं, जिन्हें जब चाहो बदल सकती हो और कुछ ऐसे - जिनके साथ जीने की आदत डालनी पड़ती है। इसे यूं समझ कि जिंदगी गर एक रेलवे स्टेशन है, तो कुछ फैसले इस स्टेशन की दूकाने हैं, जिनके बदलने से स्टेशन का रूप बदलता है, प्रकृति नहीं। पर जब रेलवे ट्रैक की जगह मेट्रो, ट्राम या मोनो रेल की ट्रैक बिछा दी जाए तो रेलवे स्टेशन की प्रकृति बदल जाएगी। इसीलिए ये फैसले ऐसे नहीं होते कि जब चाहा बदल लिया। ऐसे फैसले करने से पहले खूब सोच-विचार करना पड़ता है। अपने को आजमाना पड़ता है। यस या नो के तर्कों को परखना पड़ता है। जीवनसाथी चुनने का फैसला भी ऐसा ही फैसला होता है।
बेटा, कोई इनसान सौ फीसदी सही नहीं होता। सही और गलत की परिभाषा भी नितांत निजी हो सकती है। पर कुछ ऐसे मानक भी हैं जो हमें हमारे समाज से मिले हैं। उसी समाज से, जिसे हमने रचा है। इस बदलते दौर में जब समाज का व्यवहार तेजी से बदला तो इसके मानक भी बदले। पर हमारी पीढ़ी पुराने मानकों को पकड़ कर लटकी है, तुम नए मानकों के साथ उमंग में डूबी झूल रही हो। पीढ़ियों की इस खाई को पाटना बेहद जरूरी है। जानती हो, यह खाई हर दौर में बनती है। जब मैं यूथ था, तब भी मैंने यह खाई देखी थी। मेरे पापा जब यूथ रहे होंगे तो उन्होंने भी ऐसी खाई देखी होगी, मेरे पापा के पापा ने भी...। और हर बार बूढ़ी होती हुई पीढ़ी को हांफते हुए ही सही पर दौड़ना पड़ा होगा। नए बन रहे मानकों के रास्ते के कंकड़-पत्थर चुनने पड़े होंगे। यही तो प्रकृति है, यही तो नेचर है।
बेटा, रील लाइफ हर यूथ को बेहद लुभाती है। वहां की रंगीनियां, वहां के लुभावने पल, वहां की मस्ती खींचती है। उन तीन घंटों में वह भूल जाता है अपनी रीयल लाइफ की दुश्वारियां, वे तकलीफें - जो मध्यवर्गीय परिवारों की पहचान बनती गई हैं। और फिर रील लाइफ के जादूघर से बाहर निकलते ही अचेतन में बस चुके नायक-नायिका उसे मुंह चिढ़ाते हैं। उनकी सम्पन्नता तो वह ईमानदार तरीके से छू नहीं पाता, पर उनका दैहिक प्रेम यूथ के जलते मन और तन को भड़काता है। जब कभी अवसर मिले वह तन-मन को साधने की जुगत में लग जाता है। भावावेश में साथ जीने-मरने की कसमें खाता है। रिश्ते की सामाजिक स्वीकृति की बाध्यता उसे शादी तक पहुंचाती है। पर बहुत जल्द ही अचेतन के नायक-नायिका की छवि टूटती है। जीवन की जरूरतों के सामने भावनाएं आहत होने लगती हैं। जितनी तेजी से जुड़े थे, उतनी ही तेजी से बिखरने लगते हैं। बेटा, इस बिखराव की वजहें तो कई हैं पर उन वजहों पर हम फिर कभी बात करेंगे।
फिलहाल तू जा बेटा, तैयार हो। अपने दोस्तों के साथ एंजॉय कर आज का दिन। और हां, जब लौटकर आना तो मुझे कॉल करना (अगर तू थकी न रहे तो), मैं ऑनलाइन हो जाऊंगा। वैसे भी संडे है। मैटिनी शो लेकर जाऊंगा तेरी ममा को, पर तेरे लौटने से पहले लौट आऊंगा।
जानती है बेटा, अभी रात के २ बज रहे हैं। दरअसल, मैं रात में देर से लौटा हूं। तेरी ममा ने बताया कि तेरे से लंबी चैट हुई उनकी। सुना कि सैटरडे को तेरा शेड्यूल बहुत टाइट था। बेहद थकी हुई थी तू। क्यों इतना स्ट्रेन लेती है रे, एकाध क्लास मिस ही कर जाती तो क्या आफत आ रही थी? पगली।
मुझे पता है कि संडे की सुबह तू देर से उठेगी। उठेगी और लैपटॉप से चिपक कर मेल चेक करेगी। इसीलिए अभी इस खत को मेल कर दूंगा। अरे बेटा! कल तो वैलंटाइन्स डे है। बता-बता, क्या प्लानिंग है तेरी? अभी तक किसी ने मेरी बेटी को प्रपोज किया या नहीं… या मेरी बेटी ने किसी को...?
याद है तुझे... जब तू नर्सरी या प्रेप में थी... तू बेहद परेशान रहती थी कि तेरे चेहरे का कलर ब्राउन क्यों है? क्या तुझे आज भी तेरा ब्राउन कलर परेशान करता है? ना, बेटा ना। ब्राउन कलर हो या वाइट - अगर चेहरे पर ताजगी न हो, उत्साह का कोई रंग वहां न हो, तो वह चेहरा बेजान लगता है। और तू तो शुरू से हर मामले में उत्साही रही है। चाहे काम मुश्किल हो या आसान, छोटा हो या बड़ा – तू उसे लगन से करती रही है। तेरे भीतर यह जो गुण है न – बेशक इसे तूने अपनी ममा से लिया है – यह तुझे भीड़ में भी एक पहचान देता है, तुझे बिल्कुल डिफरेंट लुक देता है।
बेटा, तू अब बड़ी हो चली है। तुझमें संवेदना जितनी गहरी है, विचार उतने ही गंभीर।
इसीलिए तेरे सामने मैं सिर्फ स्थितियां रखा करता हूं, फैसले का अधिकार तुम्हारा होता है। पर बेटा, एक बात ध्यान रखना कि कुछ फैसले ऐसे होते हैं, जिन्हें जब चाहो बदल सकती हो और कुछ ऐसे - जिनके साथ जीने की आदत डालनी पड़ती है। इसे यूं समझ कि जिंदगी गर एक रेलवे स्टेशन है, तो कुछ फैसले इस स्टेशन की दूकाने हैं, जिनके बदलने से स्टेशन का रूप बदलता है, प्रकृति नहीं। पर जब रेलवे ट्रैक की जगह मेट्रो, ट्राम या मोनो रेल की ट्रैक बिछा दी जाए तो रेलवे स्टेशन की प्रकृति बदल जाएगी। इसीलिए ये फैसले ऐसे नहीं होते कि जब चाहा बदल लिया। ऐसे फैसले करने से पहले खूब सोच-विचार करना पड़ता है। अपने को आजमाना पड़ता है। यस या नो के तर्कों को परखना पड़ता है। जीवनसाथी चुनने का फैसला भी ऐसा ही फैसला होता है।
बेटा, कोई इनसान सौ फीसदी सही नहीं होता। सही और गलत की परिभाषा भी नितांत निजी हो सकती है। पर कुछ ऐसे मानक भी हैं जो हमें हमारे समाज से मिले हैं। उसी समाज से, जिसे हमने रचा है। इस बदलते दौर में जब समाज का व्यवहार तेजी से बदला तो इसके मानक भी बदले। पर हमारी पीढ़ी पुराने मानकों को पकड़ कर लटकी है, तुम नए मानकों के साथ उमंग में डूबी झूल रही हो। पीढ़ियों की इस खाई को पाटना बेहद जरूरी है। जानती हो, यह खाई हर दौर में बनती है। जब मैं यूथ था, तब भी मैंने यह खाई देखी थी। मेरे पापा जब यूथ रहे होंगे तो उन्होंने भी ऐसी खाई देखी होगी, मेरे पापा के पापा ने भी...। और हर बार बूढ़ी होती हुई पीढ़ी को हांफते हुए ही सही पर दौड़ना पड़ा होगा। नए बन रहे मानकों के रास्ते के कंकड़-पत्थर चुनने पड़े होंगे। यही तो प्रकृति है, यही तो नेचर है।
बेटा, रील लाइफ हर यूथ को बेहद लुभाती है। वहां की रंगीनियां, वहां के लुभावने पल, वहां की मस्ती खींचती है। उन तीन घंटों में वह भूल जाता है अपनी रीयल लाइफ की दुश्वारियां, वे तकलीफें - जो मध्यवर्गीय परिवारों की पहचान बनती गई हैं। और फिर रील लाइफ के जादूघर से बाहर निकलते ही अचेतन में बस चुके नायक-नायिका उसे मुंह चिढ़ाते हैं। उनकी सम्पन्नता तो वह ईमानदार तरीके से छू नहीं पाता, पर उनका दैहिक प्रेम यूथ के जलते मन और तन को भड़काता है। जब कभी अवसर मिले वह तन-मन को साधने की जुगत में लग जाता है। भावावेश में साथ जीने-मरने की कसमें खाता है। रिश्ते की सामाजिक स्वीकृति की बाध्यता उसे शादी तक पहुंचाती है। पर बहुत जल्द ही अचेतन के नायक-नायिका की छवि टूटती है। जीवन की जरूरतों के सामने भावनाएं आहत होने लगती हैं। जितनी तेजी से जुड़े थे, उतनी ही तेजी से बिखरने लगते हैं। बेटा, इस बिखराव की वजहें तो कई हैं पर उन वजहों पर हम फिर कभी बात करेंगे।
फिलहाल तू जा बेटा, तैयार हो। अपने दोस्तों के साथ एंजॉय कर आज का दिन। और हां, जब लौटकर आना तो मुझे कॉल करना (अगर तू थकी न रहे तो), मैं ऑनलाइन हो जाऊंगा। वैसे भी संडे है। मैटिनी शो लेकर जाऊंगा तेरी ममा को, पर तेरे लौटने से पहले लौट आऊंगा।
तेरा पापा
3 comments:
nice
very nice, aajkal ke youth ko apne jin shabdo mai apni baat samzhane ki koshish ki hai, vaki kabeele tareef hai.
अच्छी लगी। पत्र में रवानगी है जो पढ़ने का आनंद देती है।
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