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लेक्ट्रॉनिक मीडिया दूर से जितना लुभावना लगता है उसका सच उतना ही भयानक है। मेरी एक बेहद करीबी मित्र जो दिल्ली के एक न्यूज चैनल में काम करती थी। पर वहां उसे अपने बॉस के अप्रोच ने इस कदर डरा दिया कि उसने नौकरी छोड़ दी। उसने कसम खाई कि वह कभी किसी इलेक्ट्रॉनिक चैनल में काम नहीं करेगी। हालांकि उसके नौकरी छोड़ देने का समर्थन मैं कभी नहीं करूंगी पर उसके साथ हुए घटनाक्रमों को संकेत में जरूर आपसे शेयर करूंगी। इस शेयरिंग की मंशा महज इतनी है कि आप ऐसे बॉसों के बारे में एक राय बना सकें कि कभी ऐसे लोगों से सामना हो जाए तो आपको क्या करना है। बहरहाल यहां उन सारी घटनाओं को रखने के लिए मैं अपनी मित्र की पहचान छुपाते हुए उसे श्रेष्ठा नाम दे रही हूं। श्रेष्ठा ने अखबार की नौकरी से करियर की शुरुआत की थी। दो साल वहां काम करने के बाद उसने टीवी चैनल में काम करने का मन बनाया। एक छोटे से न्यूज़ चैनल में उसे रिपोर्टर की जॉब मिल गयी। न्यूज चैनल में जॉब मिलते ही उसकी ख़ुशी का ठिकाना नहीं था।
काम शुरू करने के कुछ दिन बाद ही उसने किसी बड़े चैनल में जाने का सपना देखना शुरू कर दिया और अपने इसी सपने को पूरा करने के लिए उसने बेतरह मेहनत की। दिन है या रात, सुबह है या शाम जब जरूरत हो फील्ड में जाने को तैयार रहती थी श्रेष्ठा। वहां काम करते हुए उसने जाना, सुना कि चैनल में काम करने वाली कुछ लड़कियां अपनी महत्वाकांक्षा को पूरा करने के लिए किस हद तक समझौता करने तैयार हो जाती हैं। ऐसे किस्सों से उसे कई बार आश्चर्य होता। वह खुद से सवाल करती कि ये लड़कियां अपने काम के बल पर क्यों आगे नहीं बढ़ना चाहतीं? ऐसी बातें सुनकर श्रेष्ठा का मन बहुत बार ख़राब होता रहा। तब उसने खुद से वादा किया कि इसी चैनल में काम करके वह अपने काम के दम पर आगे बढ़ेगी। वह मुकाम पाने के लिए किसी बॉस से कभी कोई ऐसा समझौता नहीं करेगी, जो खुद की निगाहों में उसे गिरा दे। उसी दिन उसने ब्लैंक डेट का एक रिजिग्नेशन लेटर तैयार किया और अक्सर उसे अपने पास रखने लगी।
उसकी नौकरी को महज़ पांच महीने बीते थे कि एक रोज एक सीनियर अधिकारी ने श्रेष्ठा को अपने केबिन में बुलाया। श्रेष्ठा के दिमाग में पता नहीं क्या आया कि उसने पर्स से निकाल कर अपने रिजिग्नेशन लेटर को जींस पैंट की जेब के हवाले कर लिया। अंदर पहुंचते ही सीनियर ने श्रेष्ठा को बैठने के लिए कहा। श्रेष्ठा का मन आशंकित था। कई सवाल आ-जा रहे थे। आखिर ऐसा क्या हो गया उससे कि सर ने केबिन में बुला लिया? कुछ पल की ख़ामोशी के बाद सीनियर ने श्रेष्ठा के काम की तारीफ़ की पर पता नहीं क्यों श्रेष्ठा को तारीफ का वह अंदाज नहीं जंचा। केबिन में सफोकेशन का अहसास उसे हुआ। उसका मन बेचैन हो रहा था और वह बाहर जाना चाहती थी। अचानक उसके सर ने उससे पूछा - तुम अपने काम के प्रति कितना सीरियस हो? श्रेष्ठा ने तुरंत जवाब दिया - बहुत ज्यादा। पर सर के अगले सवाल ने श्रेष्ठा के पैरों तले की ज़मीन खिसका दी। सर ने पूछा - क्या तुम अपने प्रमोशन के लिए मेरे फार्महाउस पर चलोगी? सवाल सुनकर हतप्रभ थी श्रेष्ठा। नथुने फड़कने लगे। चेहरे पर छाई रहने वाली स्निग्ध मुस्कुराहट की जगह ले ली नफरत ने। उसे लगा अगर कुछ पल वह वहां और खड़ी रह गई तो कोई बड़ा बवाल हो जाएगा। हो सकता है श्रेष्ठा खुद पर काबू न रख सके और कोई वजनी चीज उसके सिर पर मार दे। उसने जेब से हाथ बाहर निकाला। गुस्से में कांप रहे थे हाथ। पर हाथ में थमा पत्र देखते ही पूरी हिम्मत आ गई। उसने अपना रिजिग्नेशन लेटर उसकी टेबल पर फेंका और बाहर आ गई। अपने टेबल से अपना सामान उठाया और बिना किसी से कुछ कहे ऑफिस से निकल गयी। अगले दिन ऑफिस से उसके लिए फ़ोन आने शुरू हो गए, किसी को उसने रिसीव नहीं किया... पर वहां की एक सीनियर मैम के फोन को श्रेष्टा ने रिसीव कर लिया। उन से बात हुई। श्रेष्ठा ने सारी बातें मैम को बताईं,यह सोचकर कि शायद वह एक लड़की के मनोभाव समझ सकें। पर अफसोस महिला होकर भी उन्होंने उस इंसान (?) का पक्ष लिया जिसने श्रेष्ठा को प्रमोशन देने के पीछे शर्त रखी कि फार्महाउस चलो।
सर के केबिन में गुजरे इस मिनट के वक्त ने श्रेष्ठा के पूरे विश्वास को हिला दिया है। इतनी बार इस यातना की चर्चा वह मुझसे कर चुकी है कि केबिन का हर पल मुझे दिखने-सा लगा है। उस यातना को सिर्फ श्रेष्ठा ने नहीं जिया, उसकी मित्र होने के नाते मैंने भी जिया है। सबसे तकलीफदेह बात यह लगी कि श्रेष्ठा को यह लगने लगा है कि चैनल में जो भी लड़कियां ऊंचे पद पर पहुंच गई हैं उन्होंने जरूर अपने किसी सीनियर से समझौता किया होगा। वर्ना वह मैम क्यों नहीं उसकी बात समझतीं? क्यों वह उस राक्षस का पक्ष लेतीं। मैं कहना चाहती हूं श्रेष्ठा से कि सारे लोग तुम्हारे उस बॉस जैसे नहीं होते और न ही चैनल की सारी लड़कियां समझौते करके आगे बढ़ती हैं। पर अभी श्रेष्ठा के भीतर भरोसा जगाने में वक्त लगेगा मुझे। तब तक के लिए मैं भी उसके लिए संदिग्ध हूं, और आप तो खैर हैं ही...
यह टिप्पणी नमिता शुक्ला की है, जो उन्होंने ईमेल के जरिए मुझ तक पहुंचाई । दुआ करें कि वह वक्त लौट आए जब हम और आप किसी श्रेष्ठा की निगाह में संदिग्ध होने को अभिशप्त न हों।
काम शुरू करने के कुछ दिन बाद ही उसने किसी बड़े चैनल में जाने का सपना देखना शुरू कर दिया और अपने इसी सपने को पूरा करने के लिए उसने बेतरह मेहनत की। दिन है या रात, सुबह है या शाम जब जरूरत हो फील्ड में जाने को तैयार रहती थी श्रेष्ठा। वहां काम करते हुए उसने जाना, सुना कि चैनल में काम करने वाली कुछ लड़कियां अपनी महत्वाकांक्षा को पूरा करने के लिए किस हद तक समझौता करने तैयार हो जाती हैं। ऐसे किस्सों से उसे कई बार आश्चर्य होता। वह खुद से सवाल करती कि ये लड़कियां अपने काम के बल पर क्यों आगे नहीं बढ़ना चाहतीं? ऐसी बातें सुनकर श्रेष्ठा का मन बहुत बार ख़राब होता रहा। तब उसने खुद से वादा किया कि इसी चैनल में काम करके वह अपने काम के दम पर आगे बढ़ेगी। वह मुकाम पाने के लिए किसी बॉस से कभी कोई ऐसा समझौता नहीं करेगी, जो खुद की निगाहों में उसे गिरा दे। उसी दिन उसने ब्लैंक डेट का एक रिजिग्नेशन लेटर तैयार किया और अक्सर उसे अपने पास रखने लगी।
उसकी नौकरी को महज़ पांच महीने बीते थे कि एक रोज एक सीनियर अधिकारी ने श्रेष्ठा को अपने केबिन में बुलाया। श्रेष्ठा के दिमाग में पता नहीं क्या आया कि उसने पर्स से निकाल कर अपने रिजिग्नेशन लेटर को जींस पैंट की जेब के हवाले कर लिया। अंदर पहुंचते ही सीनियर ने श्रेष्ठा को बैठने के लिए कहा। श्रेष्ठा का मन आशंकित था। कई सवाल आ-जा रहे थे। आखिर ऐसा क्या हो गया उससे कि सर ने केबिन में बुला लिया? कुछ पल की ख़ामोशी के बाद सीनियर ने श्रेष्ठा के काम की तारीफ़ की पर पता नहीं क्यों श्रेष्ठा को तारीफ का वह अंदाज नहीं जंचा। केबिन में सफोकेशन का अहसास उसे हुआ। उसका मन बेचैन हो रहा था और वह बाहर जाना चाहती थी। अचानक उसके सर ने उससे पूछा - तुम अपने काम के प्रति कितना सीरियस हो? श्रेष्ठा ने तुरंत जवाब दिया - बहुत ज्यादा। पर सर के अगले सवाल ने श्रेष्ठा के पैरों तले की ज़मीन खिसका दी। सर ने पूछा - क्या तुम अपने प्रमोशन के लिए मेरे फार्महाउस पर चलोगी? सवाल सुनकर हतप्रभ थी श्रेष्ठा। नथुने फड़कने लगे। चेहरे पर छाई रहने वाली स्निग्ध मुस्कुराहट की जगह ले ली नफरत ने। उसे लगा अगर कुछ पल वह वहां और खड़ी रह गई तो कोई बड़ा बवाल हो जाएगा। हो सकता है श्रेष्ठा खुद पर काबू न रख सके और कोई वजनी चीज उसके सिर पर मार दे। उसने जेब से हाथ बाहर निकाला। गुस्से में कांप रहे थे हाथ। पर हाथ में थमा पत्र देखते ही पूरी हिम्मत आ गई। उसने अपना रिजिग्नेशन लेटर उसकी टेबल पर फेंका और बाहर आ गई। अपने टेबल से अपना सामान उठाया और बिना किसी से कुछ कहे ऑफिस से निकल गयी। अगले दिन ऑफिस से उसके लिए फ़ोन आने शुरू हो गए, किसी को उसने रिसीव नहीं किया... पर वहां की एक सीनियर मैम के फोन को श्रेष्टा ने रिसीव कर लिया। उन से बात हुई। श्रेष्ठा ने सारी बातें मैम को बताईं,यह सोचकर कि शायद वह एक लड़की के मनोभाव समझ सकें। पर अफसोस महिला होकर भी उन्होंने उस इंसान (?) का पक्ष लिया जिसने श्रेष्ठा को प्रमोशन देने के पीछे शर्त रखी कि फार्महाउस चलो।
सर के केबिन में गुजरे इस मिनट के वक्त ने श्रेष्ठा के पूरे विश्वास को हिला दिया है। इतनी बार इस यातना की चर्चा वह मुझसे कर चुकी है कि केबिन का हर पल मुझे दिखने-सा लगा है। उस यातना को सिर्फ श्रेष्ठा ने नहीं जिया, उसकी मित्र होने के नाते मैंने भी जिया है। सबसे तकलीफदेह बात यह लगी कि श्रेष्ठा को यह लगने लगा है कि चैनल में जो भी लड़कियां ऊंचे पद पर पहुंच गई हैं उन्होंने जरूर अपने किसी सीनियर से समझौता किया होगा। वर्ना वह मैम क्यों नहीं उसकी बात समझतीं? क्यों वह उस राक्षस का पक्ष लेतीं। मैं कहना चाहती हूं श्रेष्ठा से कि सारे लोग तुम्हारे उस बॉस जैसे नहीं होते और न ही चैनल की सारी लड़कियां समझौते करके आगे बढ़ती हैं। पर अभी श्रेष्ठा के भीतर भरोसा जगाने में वक्त लगेगा मुझे। तब तक के लिए मैं भी उसके लिए संदिग्ध हूं, और आप तो खैर हैं ही...
यह टिप्पणी नमिता शुक्ला की है, जो उन्होंने ईमेल के जरिए मुझ तक पहुंचाई । दुआ करें कि वह वक्त लौट आए जब हम और आप किसी श्रेष्ठा की निगाह में संदिग्ध होने को अभिशप्त न हों।
- अनुराग अन्वेषी
9 comments:
सब जगह यही हाल है - क्या मीडिया, क्या प्राइवेट संस्थान और क्या सरकारी दफतर।।
सब जगह यही हाल है - क्या मीडिया, क्या प्राइवेट संस्थान और क्या सरकारी दफतर।।
ये न्यूज़ चैनलों का सच नहीं है ये किसी के लाचारी का सच है जो सर्वव्याप्य है, आप चाहे स्त्री हो या पुरुष आप की ऊँगली जहाँ दबी वही भेडिये बैठे है, अब आप जिस स्तेमाल लायक है आप के साथ होगा ! ऐसा शायद धरती के हर कोने पर होता है !
इस बात को दबाना भी इसे बढ़ावा देना है नौकरी छोडनी ही थी तो साले की माँ बहन कर के , कमसे कम दुबारा किसी से हिम्मत न कर पाए,या उसही का स्टिंग कर मालिको को दे दिया जाए !
पर इसका एक पक्ष और है, कुछ लोग ज़रूर सहमत होते होंगे तभी तो इनको हिम्मत होती है ???
Aapki baat se sou take sahmat hun...sab log ek jaise nahi hote...
na hi saare boss corrupt hote hain na hi uchch padon par baithi striyan...yah baat apni mitra ko samjhaiye...
Unke anubhav aise rahe hain ki ye baaten unhe maan pana sahaj nahi lagega...parantu yah bhi to saty hai na ki jaise unhone samjhouta nahi kiya ,aise aur bhi kai striyan hongee jo unkee tarah hon....
Stree deh ke saath yah bhay aur aashanka sahaj roop se sadaiv vidyamaan rahengee...parantu iske wajah se kaam karna band kar dena kisi bhi haal me iska hal nahi hai....
sangharsh hee to jeevan ko sudoul banatee hai...unhe kahiye ki ise matra ek duryog durghatna maan kar ek shiksha kee tarah len aur fir se naye thour kee talaash me nikal paden...
Yeh Sach hai ki News Channel ki news ab bikta hai.
नमिता जी से कहना चाहूंगी कि बेकार के भरोसे न जगाएं लोगों के मन में, सिर्फ इसलिए कि भई सब लोग एक जैसे नहीं होते। बेहतर होगा आप क्षितिज को सचाई न माने। कुछ और लड़कियों (जो चैनलों से लौट आईं) से कभी आपकी अंतरंग मित्रता होगी, तो आपको एक नहीं अनेक श्रेष्ठाएं दिखेंगी। और हां, श्रेष्ठा की वे सीनियर्स भी कई मिलेंगी जिसने उसकी बात को समझने की बजाए उसके सर का पक्ष लिया था। इलेक्ट्रानिक मीडिया बिगड़ैल बैल है, यह जान लें।
नमिता जी से कहना चाहूंगी कि बेकार के भरोसे न जगाएं लोगों के मन में, सिर्फ इसलिए कि भई सब लोग एक जैसे नहीं होते। बेहतर होगा आप क्षितिज को सचाई न माने। कुछ और लड़कियों (जो चैनलों से लौट आईं) से कभी आपकी अंतरंग मित्रता होगी, तो आपको एक नहीं अनेक श्रेष्ठाएं दिखेंगी। और हां, श्रेष्ठा की वे सीनियर्स भी कई मिलेंगी जिसने उसकी बात को समझने की बजाए उसके सर का पक्ष लिया था। इलेक्ट्रानिक मीडिया बिगड़ैल बैल है, यह जान लें।
यह चैनल की ही नहीं हर जगह की कहानी है जहां पर ग्लैमर है। बेशक इसके लिए दोषी वे बॉस हैं, जो लड़कियों को इस नज़र से देखते हैं। पर मेरा मानना है कि अगर हम शोषण करवाने के लिए तैयार नहीं हैं तो दुनिया में कोई माई का लाल ऐसा पैदा नहीं हुआ है जो हमारा शोषण कर सके। दुख तो इस बात का है कि मीडिया में काम करनेवाले लोगों से बड़ा शोषित और दमित वर्ग मैंने अपने जीवन में आजतक नहीं देखा है। मुझे लगता है कि मीडिया में निकम्मों की फौज ने शोषण को अधिक बढ़ावा दिया है। एक बार फिर वेल डन श्रेष्ठा।
pahli baar blog par aayi..aur header lines hi bha gayi..ye post bhi aapki kalam ka jadoo dikhati hai
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