मां की कविता प्रतीक्षा पढ़ते हुए ये बातें 26 दिसंबर 95 की रात लिखी थीं। प्रतीक्षा यहां पढ़ी जा सकती है।
निःशब्द
होकर बिखर जाना,
किसी ताजा खबर की आस में
सचमुच
बहुत बड़ी भ्रांति है
सच है
कि सपने प्यारे होते हैं
लेकिन
वासंती बयार के साथ
उन्हें उड़ा देना
ठीक वैसा ही है
कि हम विरोध करें
और हमारी तनी मुट्ठियां
हवा में आघात करें
इसलिए चलो
बाहर की उमस को बढ़ने से रोकें
और
फिर से
युद्ध के लिए एक व्यूह रचें।
Thodi si Bewafai....
4 years ago
5 comments:
अद्भुत कविता है ..निराशा के दौर से उपजी एक आशा ....
bahut badhiya hai.
हाँ अनुराग सच ही लिखा है आपकी माँ....मगर कभी-कभी तो ये भी लगता है कि ये युद्ध तो हमारे भीतर ही कहीं अनवरत चल रहा होता है.....!!
बहुत सुंदर रचना है।
ये आपका एक स्थायी रंग है। जो लगभग हर कविता में मिलेगा। दुख और निराशा से सीधे संघर्ष का आह्वान।
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