मैं
ने कई बार कई जगहों पर पढ़ा और सुना है कि मकबूल फिदा हुसैन ने हिंदू देवी-देवताओं की कई अश्लील पेंटिंग बनाई थी। इसी कड़ी में सरस्वती की तस्वीर भी थी। गर एम. एफ. हुसैन का विरोध इसी मुद्दे पर हिंदू कर रहे हैं तो मुझे लगता है कि मकबूल फिदा हुसैन वाकई हिंदू जनमानस को बहुत करीब से समझते हैं। क्योंकि सिर्फ इसी बात को मुद्दा बना कर विरोध करने वालों के भीतर बसी सरस्वती वाकई नंगी है, वरना उन्हें यह समझ होती कि चंद लकीरों से उकेरी गई कोई नंगी तस्वीर मां सरस्वती की कैसे हो सकती है?मां सरस्वती के जिस रूप को हम और आप बचपन से जानते रहे हैं वह तो धवल वस्त्रों में लिपटी हुई हंसवाहिनी और वीणावादिनी वाली मुद्रा है। उनके चेहरे पर गरिमामयी मुस्कान है, ओज है...और पता नहीं क्या-क्या। यानी, उक्त गुणों में से कोई भी एक गुण जिस तस्वीर में हमें न दिखे, वह मां सरस्वती की तस्वीर हो नहीं सकती, भले ही कोई लाख चीख-चीख कर क्यों न बोले। क्या आप किसी ऐसी तस्वीर को मां सरस्वती की तस्वीर के रूप में स्वीकार करना चाहेंगे जो हंस के बदले कौवे पर बैठी हो? जाहिर है नहीं। तो फिर बगैर कपड़े वाली तस्वीर में आपको मां सरस्वती कहां से दिख गई?
कहना यह चाहता हूं कि भले ही हुसैन ने उस तस्वीर पर लिख दिया हो सरस्वती, पर वह आपकी 'मां सरस्वती' नहीं है। फर्ज कीजिए सरस्वती की जगह उसने लाली लिखा होता, तब भी क्या आप इसी तरह विऱोध करते? या फिर काली लिखा होता तो क्या करते? क्योंकि यह तो कड़वा सच है कि कपड़ों के संग तो काली की कोई तस्वीर अभी तक नहीं दिखी। हां, हर तस्वीर में कलाकार यह कमाल जरूर दिखाता है कि मुंडमालाओं से उनके अंग विशेष लगभग ढक जाते हैं।
आपके इस विरोध के क्रम में आपको एक घाटा यह जरूर हुआ कि आप हुसैन की एक लाजवाब पेंटिंग को निहारने से चूक गए। उनके सधे ब्रश स्ट्रोक्स और कलर कॉम्बिनेशन की तारीफ करने का अवसर आपके हाथ से फिसल गया। इतना ही नहीं विरोध के दौरान आपने अपनी एनर्जी जाया की। यही एनर्जी अगर बचा कर रखी जाये, अपने आक्रोश को अगर आप तरतीब देना सीख जायें तो शायद इस समाज में हर दिन उतर रहे किसी काली, किसी दुर्गा, किसी सरस्वती, किसी लक्ष्मी, किसी राधा, किसी सीता, किसी द्रौपदी के वस्त्र की रक्षा कर सकेंगे।
इस तरह, उनकी बनाई तस्वीर अश्लील नहीं थी। मकबूल जैसे कलाकार को हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई जैसी श्रेणी में बांटना, मुस्लिम होने के नाम पर उनका विरोध करना और उनकी बनाई किसी न्यूड स्त्री की तस्वीर में मां सरस्वती का रूप देखना वाकई अश्लील है।
शब्दों से भी तस्वीर बनाई जाती है। रीतिकाल के कवियों ने नायक और नायिका के कार्य-व्यापारों का वर्णन पूरे मनोयोग से किया है। उनकी रचनाएं हिंदी साहित्य के कोर्स का हिस्सा तो हैं ही, हिंदी साहित्य के इतिहास में उनका स्थान बहुत ऊंचा भी है। पर इस देश में यह भी मुमकिन है कि अचानक कोई स्वयंभू आलोचक पैदा हो जाये और कहे कि ये रीतिकालीन कवि तो बेहद कमबख्त थे। बड़ा ही अश्लील साहित्य रचते थे।
ये लोकतांत्रिक देश है। धूमिल ने लिखा था - मेरे देश का प्रजातंत्र / मालगोदाम में लटकी बाल्टी की तरह है / जिस पर लिखा होता है आग / और भरा होता है / बालू और पानी / ...। तो इस देश के लोकतंत्र ने धूमिल की इन पंक्तियों को खारिज करते हुए बताया कि बालू और पानी नहीं भरा होता है, हममें आग ही भरा है। यह लीजिए जिस प्रेमचंद को आप सम्मान देते हैं, उसे तो लिखने का भी शऊर नहीं था। जाति-विशेष के लिए असम्मानजनक टिप्पणी लिखने का दुस्साहस किया था उसने, सो देखिए उसकी किताबों का हश्र। कैसे धू-धू करके आग में जल रही हैं।
मित्रो, बताएं आप कि प्रेमचंद का लिखना अश्लील था या उनकी किताबों को जलाना या फिर जलती किताबों को देख कर भी हमारा चुप बैठना?
19 comments:
nice post........
sundar vivechna ki hai anveshi ji, aapki baton se sahmat hoon
अनुराग भाई, इतनी बेबाकी से कम ही लोग लिख पाते हैं, इस देश को आप जैसे लिखने वालों की सख्त जरुरत है. आपके अगले पोस्ट का इंतजार रहेगा.
आपके आलेख को पढ़कर कुछ प्रश्न आ गए ... कोशिश कर जवाब दीजियेगा :
* देखिये भारत की एक छवि है .. अब जब पाकिस्तान भारत के खिलाफ झूठ का प्रचार करता है तो ... इस अवस्था में भारत को विरोध करना जायज है या नाजायज?
पेंटिंग मैं नाम लिखने की जरुरत ही क्या थी ... यदि कला है तो कला हे रहने देते हिन्दू या मुस्लिम का नाम देने की जरुरत ही क्यों आन पड़ी? क्या कला की ये मांग थी की नग्न paintings में हिन्दू देवी देवताओं का नाम दो ?
फर्ज कीजिये की हम-आप एक नग्न तस्वीर मैं खुदा की बनाई स्त्री सौंदर्य को निहार रहे हैं .... कोई कह दे की ये तस्वीर चोरी से उस स्त्री के स्नान करते समय ली गई है और वो स्त्री कोई और नहीं बल्कि हमारे-आपके सम्बन्ध के है | क्या इस अवस्था मैं भी हम-आप उस नग्न तस्वीर की खूबसूरती को निहारेंगे और उसकी तारीफ़ करेंगे ?
दूसरी बात ये है की उन्होंने कुछ और भी महिलाओं की paintings बनाई जो पुरे कपडे मैं थी और नाम भी दिया शायद फातिमा ..... करके क्यूँ ये कुछ और कहानी नहीं कह रहा है ?
दुनिया मैं प्रतिदिन हजारों बेहतरीन ... (फ़िदा हुसैन से भी अच्छी) नग्न स्त्री की paintings बनती है .... कौन हिन्दू विरोध करता है उसका, बताएं? वैसे ही हजारों बेहतरीन कार्टून प्रतिदिन बनता है कोई विरोध नहीं लेकिन जब कार्टून पे मुहम्मद साहब का नाम लिख दिया जाता है तो पूरी दुनिया को हिला दिया जाता है |
क्या आपको लगता है की मुहम्मद साहब के कार्टून का विरोध कर एक बेहतरीन कार्टून को लोगों से दूर कर दिया गया?
उपरोक्त प्रश्नों पे आपके विचार जानने की अभिलाषा है |
अनुराग जी आप ने प्रेम चाँद को कभी पूरा पढ़ा हैं मुझे लगता हैं की आप पूर्वाग्रह से ग्रसित इंसान हैं अगर आप ने पढ़ा होता पूरा तो इसी बात नहीं लिखते रही बात मकबूल फ़िदा हुसेन की तो इसमें उन्होंने क्लेअर कहा था की ये सरस्वती की तस्वीर हैं चाहे वो कोवे पे हो या हंस पे आप को अभी और पढ़ने की जरुरत हैं क्योंकि हिंदी सहिय्त्य और हिन्दू समाज मैं अभी भी कोवे को भी स्थान दिया गया हैं और वो भी पीतर देव का इस लिए कुछ भी लिखने से पहले सोचिये आप के भी पूर्वज रहे होंगे और आप उनका शरद इत्यादि कर्म करते होंगे तो इतने भावुक न हो और लिखने से पहले कई बार सोचे किताबे देख के ब्लॉग मत बनाये :डी थंक्स
इस तरह आप किसी को दोषमुक्त करार नहीं दे सकते यह तो जानबूझकर अशांति फैलाने का तरीका है
bhaiya ji isi chitra ke aage husain kisii islamik ka naam likh dete?
HUSAIN likhte, MUHAMMAD likhte, FATIMA likhte....
waise aalekh achchha hai....
HINDUON KI BHI SOCHIYE
अनुराग जी, (मेरी हिंदी में लिखाई की भूलो को माफ़ करे )
दो प्रश्न उठ रहे हैं| -
१) में सोचता हूँ की कलाकार की कल्पना शक्ति और उसकी सोच वोह अपने च्तिरो में उतरता हैं | शायद यही चीज़ उसे दुसरे कलाकार से उम्दा या निम्न ठहेराती है|
अगर हुसेन सचमे कलाकार हैं तो उनकी सोच कितनी घटिया होगी की उन्होंने इतनी सारी सुन्दर स्त्रियों को छोड़ एक हिन्दू देवी को अपनी कलाकारी दिखाने में चुना | ना अपनी उम्र का लिहाज ना करोडो हिन्दू के भावना ओ का ख्याल - ऐसे कमीने हुसेन ने क्या एक महेज इत्तेफाक से ये नग्न तस्वीर बनायीं होगी ?? जरा सोचिये .... यह लोग हमेशा से ही हमारा द्वेष करते आ रहे है हमारा क्योंकि हम मूर्तिपूजक है|
२) आपके ब्लॉग का शीर्षक है "माँ का ब्लॉग". अगर Mr. हुसेन इसी माँ पर अपनी एक कलाकृति पेश करदे, जैसी माँ सरस्वती पर की है , तब भी आप उसकी चित्र में आप अपनी माँ को पहेचान ने से इंकार कर चित्र की प्रशंसा कर सकेंगे ?
आप अगर मुझे उत्तर ना भी दे तब भी अपने आप को उत्तर जरूर देना.
bahut hi achcha likha hai aapne. halanki aapki sabhi bato se sahmat nahi hu, lekin likhai achchi hai.
likhte rahiye,
shubhkamnayen
बहुत अच्छी सोच... विडंबना यह है कि सत्य के साथ जीने वालों के लिए पग पग पर खतरे हैं... उन्हें समझना पड़ता है कि वे हिन्दू मुसलमानों के बीच में रह रहे हैं... इंसानों के बीच में नहीं...
उस चित्र पर हुसैन ने अपनी माँ का नाम क्यों नही लिख दिया? एक कार्टून पर पूरी दुनिया सिर पर उठाने वाले दूसरो की आस्था से कैसे खेल सकते हैं? हुसैन निहायत घिनौना एवँ गलीज़ है.फिरदौस खान अपने धर्म की तो बड़ी रहनुमा बनती है पर दूसरे के धर्म पर कैसी लोमडी की तरह कमेंट करती है.
@ राकेश सिंह जी,
-सिर्फ विरोध ही नहीं करना चाहिए यह भी बताना चाहिए कि पाकिस्तान झूठ बोल रहा है।
- यह चर्चा मैंने अपने पोस्ट में की है। और उसका आशय यह भी है कि नाम न देते तो भी चलता। पर नाम दे दिया तो कोई आसामान नहीं टूट पड़ा। ढेर सारे नाटकों में ऐसे पात्र मिल जाएंगे जो महज एक नाम दे देने भर से प्रतिकात्मक बन जाते हैं। वह वर्ग विशेष का प्रतिनिधित्व करने लग जाते हैं।
-आपका तीसरा सवाल स्पष्ट नहीं है। वैसे खजुराहो की मूर्तियों के बारे में आपकी क्या राय है?
- फातिमा वाली तस्वीर की जानकारी नहीं है। और अगर ऐसी कोई तस्वीर उन्होंने बनाई है और फातिमा नाम दिया है तो ये दोनों नाम (सरस्वती और फातिमा) दोनों जगहों के माहौल को बयां करते हैं कि कहां कितना खुलापन है।
- आपने लिखा है 'दुनिया में प्रतिदिन हजारों बेहतरीन ... (फ़िदा हुसैन से भी अच्छी)नग्न स्त्री की paintings बनती है...'आपकी यह बात बताती है कि हुसैन की पेंटिंग को आप अच्छी मानते हैं। :-)वैसे मैंने कब कहा कि किसी भी कार्टून का विरोध करना जायज है?
@ विनोद जी, 'प्रेम चांद' नाम के किसी लेखक को मैं नहीं जानता। डिटेल में जानकारी उपलब्ध कराएं तो अहसान मानूंगा। एक अहसान यह भी करें कि किसी कॉपी में १०० बार हिंदी में प्रेमचंद लिखने का अभ्यास जरूर कर लें।
@ भृगु भार्गव जी, आपने हिंदी की भूलों के लिए माफी मांगते हुए अपना कमेंट लिखा है। चलिए मान लिया कि आपकी हिंदी अच्छी नहीं है। पर भाईसाहब जरा यह तो बताएं कि आपने भारतीय संस्कृति को समझने के लिए अंग्रेजी की सामग्री पढ़ी है क्या? भारतीयता के बारे में लोगों को आप जागरूक करना चाहते हैं, हिंदी में बेहतर एक्स्प्रेशन सीखे बिना यह काम आप करेंगे कैसे? वैसे मैंने देखा कि आपकी अंग्रेजी भी अच्छी नहीं है। जरा अपने ब्लॉग पर जाकर अपनी अंग्रेजी भी सुधार लें।
@ Vir, किसी के बारे में कोई राय देने में जिसे इतनी शर्म आती हो, कि वह अपनी पहचान छुपाता फिरे। उससे बेहतर तो वे लोग होते हैं, जो गाली-गलौज करें या बहस - अपने नाम और अपनी पहचान के साथ करते हैं।
@ Vir, विनोद और भार्गव जी, पाश की कविता की कुछ पंक्तियां याद आ गईं, सुनें जरा। 'जा पहले तू इस काबिल होकर आ, अभी तो मेरी हर शिकायत से तेरा कद बहुत छोटा है...
हा हा..सही जा रहे हैं इसी लीक पे आगे बढें?
क्या वो किसी मर्द की कैसी भी तस्वीर बना कर उसपे अल्लाह या मुहम्मद लिखने के बाद उसे प्रदर्शनी में लगा कर, जिंदा रह सकते हैं? ...अरे भई कोई भी हो सकता है ना इस नाम का? :) आप कीजियेगा ट्राई?
जाहिरा तौर पर, जो हुसैन के कुछ चित्रों को अश्लील मानते हैं, वे लोग हिंदू मायथॉलाजी, प्राचीन मिनिएचर स्कल्पचर और मिनिएचर पेंटिंगों के दर्शन लाभ से वंचित हैं, नहीं तो इनके ज्ञान चक्षु भकाक से खुल जाते हमेशा के लिए.
बहुत पहले की बात है. मेरा एक मित्र इसी बात पर हुसैन को अश्लील गालियाँ दे रहा था. मैंने उन्हें श्रीमती जी के संग्रह (वे चित्रकला की प्राध्यापिका हैं,) से इन प्राचीन मूर्तियों और पेंटिंगों के कुछ चित्र दिखाए तो मित्र का मुँह बंद हो गया. उन्होंने स्वीकारा कि अश्लील तो यह है! हुसैन द्वारा बनाए निर्वस्त्र चित्रण तो इनके सामने कुछ भी नहीं हैं!
और, कोई बताएगा कि ईश्वर ने कपड़ा ईजाद किया या मानव ने?
साथ ही, चित्रों में ईश्वरों को मानवीय कपड़े पहनाने की शुरूआत, लोगों को पता है, कब से हुई?
@राकेश सिंह जी, कृपया मेरे लिखे जवाब में 'प्रतिकात्मक' को 'प्रतीक' पढ़ें।
अनुराग जी, सवालों से बचने का पुराना "लाल मंत्र" इस्तेमाल किया आपने. माना कि "आपकी शिकायत से उनका कद छोटा है" लेकिन सवाल तो बड़ा ही है. आप जैसा ज्ञानी इन बच्चों की तोतली बोली में पूछे गए प्रश्नों का भी मंतव्य समझ ही गया होगा. उत्तर देकर इन नादानों का कुछ ज्ञानवर्धन करते तो बड़े होकर इन्हें दुनियादारी की कुछ समझ आ जाती.
मान लीजिये कि आपको कोई माँ की गाली देता है ........अरे आप तो बुरा मान गए..... चलिए मुझे ही देता है, तो गाली का जो शब्दशः मंतव्य है वह तो झूठ है फिर मुझे तो इसका बुरा नहीं मानना चाहिए (ऐसा ही कुछ शायद आप समझाना चाह रहे थे), या फिर मुझे उसमे "शाब्दिक सौंदर्य, शब्दकोष - समृद्धि की दृष्टि से उसका महत्व और लोकसाहित्य में मानसिक उद्द्वेग की अभिव्यक्ति में उसके योगदान" पर विचार करना चाहिए. लेकिन साहब हम तो ठहरे निपट देहाती सो अपने गंवाई परिवेश से हमने सीखा कि उसे वहीँ दचककर पांच-दस लातों की सेवा और चार जूतों के पान-पत्ते से आवभगत किये बगैर उसे जाने नहीं देना चाहिए.
तो हम देहातियों को - जो न हिंदी जानते हैं और न ही अंगरेजी - चित्रकला जैसे गूढ़ विषय का ज्ञान देने पर आपका समय जाया हुआ इसका हमें खेद है.
और हाँ नाम पर ना जाइएगा.......... गाँव - देहात में माँ - बाप के दिए नाम को जरा बिगाड़कर ही पुकारने का प्रचलन है............ देहाती जो ठहरे!!!!
@अनुराग जी आपके उत्तर को देख के निराशा ही हुई | मैं तो ये आस लगाए बैठा था की आप मेरे प्रश्नों का जवाब सोच समझ कर देंगे | थोडा विस्तार मैं फिर से कहता हूँ :
* जब तब पाकिस्तान ये कहता रहता है की विदेशी ताकत पाकिस्तान को अस्थिर करना चाहता है तब तब भारत चुप रहता है | जैसे ही भारत का नाम आता है हम विरोध करते हैं | वैसे ही जब तक नाम नहीं दिया जाता तब तक कोई बवाल नहीं है | और अनुराग जी आप मेरे सबसे महत्वपूर्ण सवाल का जवाब हो गोल कर गए | क्या ये कला की ये मांग थी की उस नग्न पेंटिंग का नाम हिन्दू देवी का दिया जाए ?
* मैंने आपको बहुत सुन्दर उदाहरण देकर सवाल पूछा था, जरा फर्ज कीजिये ...... पंगती मैं किये गए सवाल का जवाल ही गोल कर गए आप ... कृपया स्पस्ट जवाब दीजिये|
* आपने कहा फातिमा ... पेंटिंग के बारे मैं जानकारी नहीं है तो भाई साहब पहले उसकी भी जानकारी लेते भीर पोस्ट लिखते तो अच्छा रहता |
* हुसैन की कुछ पेंटिंग्स अच्छी है और मैं भी तारीफ़ करता हूँ पर भेडियाधसान में नहीं जाता की हुसैन की बनाई सारी पेंटिंग्स नंगी संगी ... अच्छे हैं | किसी कलाकार की १००% पेंटिंग्स अच्छी नहीं होती | हुसैन की हिन्दू देवी की नग्न पेंटिंग्स को महान करार देना तो मानशिक दिवालियेपन का ही द्योतक है और उसकी मानसिक अवस्था किस किस्म की होगी ये अनुमान लगाया जा सकता है |
* आपने एक और सवाल उठाया है खजुराहो की ... अनुराग जी मुझे लगता है की आपने कभी ये जानने की इमानदार कोशिश की ही नहीं की आखिर ऐसा क्यों है? यदि कोशिश किया होता तो आप जैसे पढ़े लोग ये सवाल ही नहीं करते ... कभी समय मिले तो ओशो को पढ़ लीजिये कहुराहो के संधर्भ मैं ... साड़ी भ्रांतियां दूर हो जायेंगी ... | फिलहाल के लिए समय मिले तो संक्षेप मैं ये पढ़ लीजिये : http://raksingh.blogspot.com/2009/09/why-sexual-statue-or-carvings-in-hindu.html
अनुराग जी पोस्ट लिखने का मूल उद्देश्य शायद विचारों का आदान प्रदान है | पर आपकी टिप्पणी ये दर्शाती है की ... आप टिप्पणी द्वारा आये कुछ बेहतरीन विचारों को सिर्फ इसलिए गलत ठहरा रहे हैं क्योंकि आप ये मान बैठे हैं की आपने जो लिखा है वो ही सत्य है | खैर मैं तो अफ्ले भी आपके ब्लॉग पे आया था और समझता था की विचारों की दिकयानुशी घेरे से आप बाहर हैं | ....इस बार कृपया कर जवाब गुस्से मैं आ कर नहीं दीजियेगा... ठंढे शांत मन से ये समझकर जवाब दीजिये की आपके किसी मित्र ने ही ये सवाल पूछे हैं ...
अनुराग जी बधाई। जिस दिन यानी 31 अक्टूबर 2009 को जब आपसे मुलाकात हुई उस दिन के दैनिक जनसत्ता में आपकी यह पोस्ट नजर का फेर शीर्षक से प्रकाशित हुई थी। जिसका जिक्र करना मैं भूल गया। खैर ... आपसे हुई औचक मुलाकात सदैव स्मरण रहेगी।
महानुभावों ने काफी कुछ व्यक्त कर ही दिया है
लेकिन, इस टिप्पणी के माध्यम से, सहर्ष यह सूचना दी जा रही है कि आपके ब्लॉग को प्रिंट मीडिया में स्थान दिया गया है।
अधिक जानकारी के लिए आप इस लिंक पर जा सकते हैं।
बधाई।
बी एस पाबला
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