मां की कविता 'गूलर के फूल' पढ़ते हुए 6 फरवरी 95 की रात 2 बजे मेरी प्रतिक्रिया यह थी। 'गूलर के फूल' 'चांदनी आग है' (मां की कविताओं का संग्रह) में शामिल है। कविता यहां पढ़ी जा सकती है।
गूलर के फूल
की तलाश में
तुम
बि-ख-र-ती गयी
और बुनती रही
हमारे लिए
बरगद-सी छांव
4 comments:
माँ बरगद की छांव ही होती है ..आपने अपने भाव बहुत सुंदर व्यक्त किए हैं
सुंदर और सारगर्भित पंक्तियाँ !
बहुत ही सटीक कहा.....
मुझे ये कविता बेहद अच्छी लग रही है। ये आपके निजी से आगे जाती है।
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