आरुषि और हेमराज की हत्या आज से ठीक दो महीने पहले हुई थी। यानी 15-16 मई की रात। हेमराज की लाश तो एक दिन बाद यानी 17 मई को बरामद हुई। तब तक पुलिस इसी थ्योरी पर काम करती रही कि नौकर हेमराज ने आरुषि का कत्ल किया है। खैर, लाश मिलने के बाद कोताही बरतने के इल्जाम में नोएडा सेक्टर 20 के एसएचओ का तबादला हुआ। इसके बाद पुलिस ने नये सिरे से तफ्तीश शुरू की और शक के घेरे में आया डॉक्टर तलवार का पुराना नौकर विष्णु। साथ ही डॉ. तलवार के कंपाउंडर कृष्णा से भी पूछताछ हुई। मीडिया में खबर आई 'पुलिस मान रही है कि दोनों की किसी डॉक्टर या कसाई ने की है। जाहिर है पुलिस के शक के घेरे में डॉ. तलवार थे। इस बीच सूत्रों के हवाले से खबर चलती रही कि डॉ. राजेश तलवार और उनकी पारिवारिक मित्र डॉ. अनीता दुर्रानी के बीच नाजायज संबंध हैं। 24 जून को डॉ. राजेश तलवार गिरफ्तार कर लिये गये। पुलिस ने प्रेस कॉन्फ्रेंस कर कहा कि मामला ऑनर कीलिंग का है। डॉ. तलवार और डॉ. अनीता दुर्रानी के बीच नाजायज संबंध थे, जिसे आरुषि जान गई थी। उसका यही जानना उसकी हत्या की वजह बना।
अवैध संबंध और पुलिस के दावे को झूठा कहते हुए दुर्रानी दंपती मीडिया के सामने आए। इससे पहले वह चुप रहे, पता नहीं क्यों। बाद में डॉ. राजेश तलवार के परिजनों ने सीबीआई जांच की मांग की। यूपी की मुख्यमंत्री मायावती ने सीबीआई जांच की सिफारिश कर दी।
हत्या के पंद्रह दिन बाद यानी १ जून को मामला सीबीआई के हाथ में आया। मायावती के निर्देश पर एसएसपी समेत मेरठ जोन के आईजी और डीआईजी का ट्रांसफर हुआ। 13 जून को सीबीआई ने डॉ. तलवार के कंपाउंडर कृष्णा को गिरफ्तार कर लिया। उसी दिन दुर्रानी परिवार के नौकर राजकुमार से की गई पूछताछ। सीबीआई ने 27 जून को राजकुमार को गिरफ्तार कर लिया। 11 जुलाई को डॉ. तलवार को जमानत मिल गई।
इस पूरे प्रकरण को देने का मकसद सिर्फ इतना कि आरुषि और हेमराज के हत्यारे (हत्यारा) हमारी जांच एंजेसियों से ज्यादा चालाक और शातिर हैं (है)। दो महीने गुजर गये और हम अब तक सबूत तलाश रहे हैं। सबूत नष्ट कैसे हुए? नोएडा पुलिस की लापरवाही से? अगर हां, तो नोएडा पुलिस की उस पूरी टीम की सजा क्या होनी चाहिए, जिसकी वजह से हत्या का सबूत नहीं जुट पाया और हत्यारे के चेहरे पर अब तक मुखौटा है। सीबीआई जैसी शार्प जांच एजेंसी के पास अब तक कोई ठोस सबूत नहीं, जिसके बल पर यह केस कोर्ट में टिका रह सके।
क्या इस केस की नियति भी निठारी कांड की तरह लंबा खिंचना है? क्या यह निठल्लापन देखना हमसबों की नियति है? सच है कि यह केस पहेली की तरह लगने लगा है। जांच एजेंसियां जो कहती है, उस पर भरोसा करने के अलावा कोई चारा नहीं। और उसके कहने में जितने विरोधाभास हैं, उससे हम आंखें कैसे चुरा लें। पर आश्चर्य यह कि सीबीआई को ऐसी चाल दिखाने में संकोच क्यों नहीं। क्या वह किसी को बचाने में जुटी है या वाकई इतनी लाचार है कि उसका हर स्टेटमेंट अब संदिग्ध लगने लगा है।
2 comments:
aap ne bilkul sahi likha hai, hazaaron savaal sabhi ke man mein uth rahe hain,saaf lag raha hai jaise kisi ko bachaya jaaraha hai,lekin hamari majboori ye hai ki hamen usi ko sach maanna hai jo CBI kah rahi hai....koi chaara nahi hai iske siva...
सीबीआई में वही लोग हैं जो हमारी दूसरी एजेन्सी में हैं, उनका काम करने का ढंग भी कोई अजूबा नहीं है. इस देश में यों भी तय है कि जो केस चर्चा में आ जाए और खुले नहीं, उसमें किसी को भी पीट कर फंसा दो. गरीब है तो सजा होगी, अमीर है तो बरी हो जाएगा. नौकर बेशक हरामी भी होते हैं और अक्सर पुलिस के आसान शिकार होते हैं. निठारी केस तो इस इलाके के खाते-पीते तबके, मीडिया, नेताओं और पुलिस, सीबीआई के लिए उत्सव की तरह था. वे बच्चे बिहारी मजदूरों के थे, दलित, अति पिछडे मजदूरों के. वे ऐसे पिछडे नही थे जो राजस्थान से नॉएडा तक रेल रूक देते हों, हाँ बस उनके दब्डों में किरायेदार थे. सब कुछ संदिग्ध हो गया है या सब कुछ नंगा.
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