जिरह पढ़ें, आप अपनी लिपि में (Read JIRAH in your own script)

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Tuesday, June 10, 2008

'मददगारों' का एक रूप यह भी

पंकज त्यागी
नई दिल्ली : पुरानी दिल्ली में एक ऐसी वारदात हुई, जिसके बाद लुटे हुए लोग सड़क पर शायद ही किसी मददगार की मदद लेंगे। जो राहगीर बिजनेसमैन को लूटने वाली औरतों के पीछे दौड़ लगा रहे थे, वही लोग उन औरतों के फेंके 25 हजार रुपये उठाकर नौ दो ग्यारह हो गए। औरतों से 55 हजार रुपये बरामद कर उन्हें तो गिरफ्तार कर लिया गया, लेकिन मददगारों और 25 हजार रुपयों का कोई सुराग नहीं मिला।
दिलचस्प सबक देने वाली यह वारदात हुई पुरानी दिल्ली के यमुना बाजार इलाके में। शनिवार दोपहर शास्त्री नगर में रहने वाले बिजनेसमैन प्रमोद तिवारी फव्वारा चौक से गांधीनगर जाने के लिए आरटीवी में सवार हुए। उनके बैग में 80 हजार रुपये थे। फव्वारा चौक से इस गाड़ी में 6 औरतें चढ़ीं और तिवारी के आसपास बैठ गईं। इनमें से एक औरत बीमार की तरह बर्ताव कर रही थी, जबकि बाकी उसकी तीमारदारी में जुटी थी। यमुना बाजार में ये सब नीचे उतर गईं।
इसी वक्त तिवारी की निगाह अपने बैग पर गई, जहां से रकम गायब थी। औरतों पर शक होते ही उन्होंने तुरंत नीचे उतर कर शोर मचा दिया। शोर सुनते ही औरतों ने दौड़ लगा दी। 'बीमार' औरत सबसे आगे दौड़ रही थी। अफरातफरी में जमा हुए राहगीरों में से कुछ औरतों का पीछा करने लगे। एक औरत ने कुछ रकम निकाली और पीछा कर रहे लोगों के सामने सड़क पर फेंक दी। यह चाल पूरी तरह कामयाब रही और पीछा कर रहे राहगीर अब औरतों को पकड़ने के बजाय सड़क से रुपये उठाने में जुट गए। इत्तफाक से यमुना बाजार में कश्मीरी गेट के एसएचओ अरुण शर्मा, हवलदार रामकिशन और सिपाही धर्मवीर गुजर रहे थे। उन्होंने अफरातफरी होते देखी और औरतों को पकड़ लिया। इनकी तलाशी में पुलिस को 55 हजार 730 रुपये मिल गए। बाकी रकम उठाकर वे 'जिम्मेदार नागरिक' फरार हो चुके थे, जो कुछ देर पहले तक बिजनेसमैन की मदद कर रहे थे।
साभार : नवभारत टाइम्स

3 comments:

Udan Tashtari said...

अजब हालत है.

Manoj Sinha said...

लोग महानगर में पैसा बनाने आए हैं, चाहे वह कैसे भी कमायें. खैर कुछ नई कविताएँ लिखो.

pradeep wason said...

मैं प्रदीप वासन यही कहना चाहूँ गा की आप जो काम कर रहे हे वह सराहनीय हे