tag:blogger.com,1999:blog-8050314914188642244.post6366945222171654269..comments2023-03-27T20:59:21.549+05:30Comments on जिरह: बहुत दिनों बादअनुराग अन्वेषीhttp://www.blogger.com/profile/09263885717504488554noreply@blogger.comBlogger1125tag:blogger.com,1999:blog-8050314914188642244.post-77638036820151537862008-01-15T16:29:00.000+05:302008-01-15T16:29:00.000+05:30कई दिनों तक चूल्हा रोया चक्की रही उदासकई दिनों त...<EM>कई दिनों तक चूल्हा रोया चक्की रही उदास<BR/>कई दिनों तक कानी कुतिया सोयी उनके पास<BR/>कई दिनों तक लगी भीत पर छिपकलियों की गश्त<BR/>कई दिनों तक चूहों की भी हालत रही शिकस्त<BR/><BR/>दाने आये घर के अंदर कई दिनों के बाद<BR/>घुआं उठा आंगन के ऊपर कई दिनों के बाद<BR/>कौए ने खुजलायी पांखें कई दिनों के बाद<BR/>चमक उठी घर भर की आंखें कई दिनों के बाद</EM><BR/><BR/>आपकी कविता का शीर्षक पढ़ कर <STRONG>बाबा</STRONG> की ये कविता याद आ गयी। बहुत शुक्रिया।Avinash Dashttps://www.blogger.com/profile/17920509864269013971noreply@blogger.com