जिरह पढ़ें, आप अपनी लिपि में (Read JIRAH in your own script)

Hindi Roman(Eng) Gujarati Bangla Oriya Gurmukhi Telugu Tamil Kannada Malayalam

 
जिरह करने की कोई उम्र नहीं होती। पर यह सच है कि जिरह करने से पैदा हुई बातों की उम्र बेहद लंबी होती है। इसलिए इस ब्लॉग पर आपका स्वागत है। आइए,शुरू करें जिरह।
'जिरह' की किसी पोस्ट पर कमेंट करने के लिए यहां रोमन में लिखें अपनी बात। स्पेसबार दबाते ही वह देवनागरी लिपि में तब्दील होती दिखेगी।

Saturday, September 27, 2008

ईश्वर, जो हमें डराता है

मो

हल्ले पर आकांक्षा की कविता पढ़ी। उस तथाकथित ईश्वर के बारे में जिसे आज अगर याद किया जाता है तो शहर दंगाग्रस्त हो जाता है। जिसकी सारी सत्ता धर्म के ठीकेदारों ने बुनी है। ये ठीकेदार हर कौम में मौजूद हैं। और इसी सर्वशक्तिमान के बल पर इनकी दुकानदारी चल रही है। खैर, दुकानदारी का चलना और धर्मों की यह विकृति - ये तो अलग से बहस का मुद्दा हैं।

बहरहाल, सोचना चाहता हूं कि इस ईश्वर के प्रति हमारी आस्था का राज कहां छुपा है। लगता है जैसे यह आस्था बरसों पहले से हमारी रगो में दौड़ रही है। तब से, जब हमारे पूर्वज जंगलों में रहा करते थे। (हालांकि रहते तो हम आज भी जंगल में ही हैं)। तो जब वह जंगल में रहते होंगे, जाहिर तौर पर उनका जीवन उसी जंगल पर निर्भर था। वह जंगल जिससे उन्हें भोजन मिलता था, जिसके आश्रय में वह रहते थे। श्रद्धा से भर उठा होगा उनका मन उसकी शक्ति देखकर। वह उसकी इज्जत करने लगे होंगे। उन्हें लगने लगा होगा इन पेड़-पौधों, झरने-पहाड़ों से बेहतर और श्रेष्ठ दूसरा कुछ तो हो ही नहीं सकता। वह नतमस्तक हुए होंगे। जीवन सुख-शांति से गुजर रहा होगा। तभी जंगल में आग लगी। (यह आग वैसे नहीं लगी होगी जैसे आज अचानक पैसेंजर ट्रेन में लग जाती है या कोई कस्बा और शहर अचानक जलने लग जाता है)। बहरहाल जंगल में आग लगी और हमारे पूर्वजों ने देखा जंगल को धू-धू कर जलते हुए। वह जंगल जो उन्हें जिंदगी देता था अभी अपनी जिंदगी बचा पाने में नाकाम था। आग जलाए जा रही थी जंगल को। सिहर गए होंगे हमारे पूर्वज। डरे होंगे। डरकर नतमस्तक हुए होंगे। डरे-डरे भागते फिरे होंगे। तभी मौसम बदला। बरसात शुरू हुई। आग को उन्होंने मरते देखा। लगा, इस आग पर तो काबू पा लेती है बारिश। यह बारिश तो आग से भी ज्यादा शक्तिशाली है। पूजा होगा उन्होंने उस बारिश को। इस तरह कई-कई और परिघटनाएं हुईं होंगी और हमारे पूर्वज कई-कई बार नतमस्तक हुए होंगे ऐसे सर्वशक्तिमानों के प्रति।

तो इस तरह हमारे भीतर डर से पैदा हुई होगी श्रद्धा और हम सबकी सत्ता स्वीकार करते गए। फिर क्या था हममें से कुछ शातिर लोग हमारे इस डर का लाभ उठाने लगे। हमारे भीतर डर पैदा करते गए, हम डरकर उस नए पैदा हुए डर को स्वीकार करते गए। ईश्वर या वह अदृश्य शक्ति, जिसका राज हमें नहीं मालूम था, हम पर राज करने लगे। धर्म के ठीकेदारों के पौबारह हुए :-( और हम ब्लॉग लिखने बैठ गए। :-)

Tuesday, September 23, 2008

यह कैसा शख्स है मेरे यारो

खिले-खिले, पर घुटे-घुटे
तने-तने, पर झुके-झुके
मिले हुए, पर कटे-कटे
ये कैसे लोग हैं मेरे यारो

साफ-साफ, पर धुआं-धुआं
भेड़चाल और हुआं-हुआं
हंसी-हंसी में जलाभुना
यह कैसा वक्त है मेरे यारो

बहुत-बहुत, पर जरा-जरा
डरा-डरा, पर हरा-भरा
जगा-जगा, पर मरा-मरा
यह कैसा रूप है मेरे यारो

प्यार-प्यार में मारो-काटो
रौद्र रूप भी और तलवे चाटो
तारीफ के बजाए डांटो-डांटो
यह कैसा शख्स है मेरे यारो

चापलूसी में है सना-सना
जगह-जगह है, घना-घना
तू कर इसे अब मना-मना
यही है वक्त का तकाजा यारो

Monday, September 22, 2008

जिंदगी मांगती रही है हिसाब

उम्र के
इसी पड़ाव पर
जिंदगी पूछने लगी मुझसे,
सच-सच बता
मुझे आखिर तूने कितना जिया

जिंदगी जब
मांगने लगे,
हर किये-धरे का
ऐसे हिसाब
मै जानता हूं
सुख गुम होता है
दुख तो खैर बेहिसाब

अब
तू तो ये न पूछ मुझसे
कि दिल्ली आकर क्या किया
सचमुच यारो,
जीने की आदत छूट गई,
मरने का सलीका सीख लिया।

Sunday, September 21, 2008

पोस्ट के नेचर के मुताबिक लगाएं तस्वीर

किसी पोस्ट के साथ उस नेचर की तस्वीर हो, तो पोस्ट निखर आता है। यह तो सच है कि इनसान का पहला परिचय तस्वीर से होता है, न कि टेक्स्ट से। इसलिए भी तस्वीर को फीलर की तरह इस्तेमाल करने की बजाय उसे पोस्ट के जरूरी हिस्से की तरह इस्तेमाल करना चाहिए। कई साथियों ने मेल कर कहा था पोस्ट के बीच में तस्वीर लगाने का तरीका बताने को। तो ऐसे साथियों की फरमाइश पर ही पेश है आज का ब्लॉग बाइट। इस अंक को पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

Monday, September 15, 2008

हादसों में हमारा भी हाथ

"यह बात एक बार फिर साबित हुई कि 13 की संख्या कितनी अशुभ होती है। और उसपर दिन अगर शनिवार हो तो कहने ही क्या। करैला ऊपर से नीम चढ़ा। याद करें, वह 13 सितंबर, दिन शनिवार की ही शाम थी, जब दिल्ली में सीरियल धमाके हुए। 20 लोग मौत के हवाले हुए और तकरीबन 150 लोग भयंकर जख्मी।"

स तरह की कोई भी स्क्रिप्ट हमारे बीच राहत लेकर नहीं आती। बल्कि सच तो यह है कि ऐसा या इस जैसा कोई भी एक्स्प्रेशन वह काम करता है जो धमाके के जरिये आतंकवादी करना चाहते थे और नहीं कर सके। यानी, ऐसी स्क्रिप्ट से हम आतंकवादियों के अधूरे मिशन को उसकी मंजिल तक पहुंचाते हैं।

ऐसे मौकों पर एक्सक्लूसिव के नाम पर जो सनसनी पैदा की जाती है, सबसे तेज की दौड़ में जो हड़बड़ी दिखाई जाती है, वह लोगों का इत्मीनान छीन लेती है। ऐसी सनसनी की जगह सजगता पैदा करने की कोशिश हो, तो वाकई कोई बात बने।


हम जिस छोटी-सी पट्टी पर हेल्पलाइन नंबर चलाते हैं, सचमुच उसका दायरा बढ़ना चाहिए। और जितने बड़े दायरे में हंगामे को समेटते हैं उसे समेट कर पट्टी में लाने की जरूरत है। ऐसा नहीं कि घटनास्थल पर हमारे कैमरे न जाएं। हमारे रिपोर्टर वहां से रिपोर्टिंग न करें। बिल्कुल करें। घटनास्थल से रिपोर्टिंग कर वहां के बारे में बताना, बेशक बेहद जरूरी है। पर मीडिया को भाषा की उस शक्ति की भी समझ होनी चाहिए, जो किसी थके-हारे को शक्ति भी देती है।

फर्ज करें, आपके पड़ोसी के घर में किसी की असामयिक मौत हो गई। आप उसके घर जाते हैं तो इसलिए कि आपके भीतर उससे अपनत्व का कोई रिश्ता है। उसे आप सांत्वना देते हैं। सच बोलने के नाम पर यह नहीं कहते कि क्या यार, जिसे मरना था मर गया, अब कितनी देर तक टेसुए बहाएगा।

मतलब यह कि हम अपने समाज से अपनत्व का वह रिश्ता भूलते जा रहे हैं। भाषा की वह समझ खोते जा रहे हैं, जिससे कोहराम के समय भी राहत दी जा सकती है। अपने उस दायित्व को भी नजरअंदाज कर रहे हैं, जिसे निभाने से खौफ की उम्र बेहद छोटी हो जाती।

आइए, लिंक करें हर बात को

साथियो,
आपके कई पत्र हमें मिले थे, जिनमें कहा गया था कि पोस्ट के बीच लिंक लगाने का तरीका बतायें। पिछले अंक में हमने वह तरीका आपको बताया था, पर साथ ही यह भी चर्चा की थी कि यह तरीका भले आसान है पर है दोषपूर्ण। लिंक लगाने के उस तरीके में दोष यह है कि लिंक की गई साइट किसी नये विंडो में न खुलकर मौजूद विंडो को ही कन्वर्ट कर देती है। इस बार ब्लॉग बाइट में एचटीएमएल की वह कोडिंग दी है, जिसके सहारे दिया गया लिंक नये विंडो में खुलेगा। नवभारत टाइम्स में छपी इस ताज़ा किस्त के लिए यहां क्लिक करें

Sunday, September 7, 2008

अपनी पोस्ट के बीच ऐसे लगाएं लिंक

ब्लॉग बाइट की ताजा किस्त के साथ हाजिर हूं मेरे दोस्तो। वादे के मुताबिक इस बार चर्चा की गई है अपनी पोस्ट के बीच किसी संदर्भ के लिंक लगाने के तरीके की। तो देखें यह काम है कितना आसान।
नवभारत टाइम्स में छपी इस ताज़ा किस्त के लिए यहां क्लिक करें

Friday, September 5, 2008

क्या है श्लील और क्या है अश्लील

श्लील और अश्लील पर बहस कोई नई बात नहीं है। जरूरी नहीं कि जो चीज एक की निगाह में अश्लील हो, उसे दूसरा भी उसी रूप में देखे। अमूमन, नंगेपन को हम बड़ी आसानी से अश्लील कह जाते हैं। पर देखने की जरूरत यह है कि किसी का नंगापन उसकी कोई मजबूरी तो नहीं। इसके बाद ही हमें किसी निष्कर्ष पर पहुंचना चाहिए। कोई स्त्री या पुरुष अपने कमरे में नंगा लेटी है/लेटा है - हमें इसे अश्लील कहना चाहिए या उस निगाह को जिसने उसके कमरे में झांकने की कोशिश की?
- क्या चापलूसी करना अश्लील नहीं है?
- किसी गलत को सही कह उसे प्रोत्साहित करना अश्लील नहीं है?
- हम ग़ज़ल लिखें और शीर्षक दें गज़ल (गजल लिखें तब तो चलेगा), तो क्या यह अश्लील नहीं है?
.......
कहने का मतलब यह कि अगर हम छांट-छांट कर निकालें तो हमारे कदम-कदम पर अश्लीलता बिछी मिलेगी। और अगर ऐसा है और हम उसे आसानी से नजरअंदाज कर बर्दाश्त किये चले जाते हैं तो क्या यह अश्लील नहीं है?
साथियो, क्या सोचते हैं आप। क्या है श्लील और क्या है अश्लील? कृपया हमें बतायें।

Monday, September 1, 2008

झट से करें फॉन्ट का धर्मांतरण

क्रुति देव सरीखे फॉन्ट को यूनिकोड में कैसे बदलें - इस बार के ब्लॉग बाइट में इसी पर चर्चा है। वैसे, यूनिकोड फॉन्ट को भी दूसरे किसी फॉन्ट में कन्वर्ट किया जा सकता है - इसकी भी जानकारी जुटाई गई है इस बार। अगले अंक में पोस्ट के बीच लिंक लगाने की चर्चा करूंगा। इसके लिए एचटीएमएल कोड भी उपलब्ध कराया जायेगा, ताकि लिंक की गई साइट या ब्लॉग नये विंडो में खुले। नवभारत टाइम्स में छपी इस ताज़ा किस्त के लिए यहां क्लिक करें