हल्ले पर आकांक्षा की कविता पढ़ी। उस तथाकथित ईश्वर के बारे में जिसे आज अगर याद किया जाता है तो शहर दंगाग्रस्त हो जाता है। जिसकी सारी सत्ता धर्म के ठीकेदारों ने बुनी है। ये ठीकेदार हर कौम में मौजूद हैं। और इसी सर्वशक्तिमान के बल पर इनकी दुकानदारी चल रही है। खैर, दुकानदारी का चलना और धर्मों की यह विकृति - ये तो अलग से बहस का मुद्दा हैं।
Saturday, September 27, 2008
ईश्वर, जो हमें डराता है
Tuesday, September 23, 2008
यह कैसा शख्स है मेरे यारो
खिले-खिले, पर घुटे-घुटे
तने-तने, पर झुके-झुके
मिले हुए, पर कटे-कटे
ये कैसे लोग हैं मेरे यारो
साफ-साफ, पर धुआं-धुआं
भेड़चाल और हुआं-हुआं
हंसी-हंसी में जलाभुना
यह कैसा वक्त है मेरे यारो
बहुत-बहुत, पर जरा-जरा
डरा-डरा, पर हरा-भरा
जगा-जगा, पर मरा-मरा
यह कैसा रूप है मेरे यारो
प्यार-प्यार में मारो-काटो
रौद्र रूप भी और तलवे चाटो
तारीफ के बजाए डांटो-डांटो
यह कैसा शख्स है मेरे यारो
चापलूसी में है सना-सना
जगह-जगह है, घना-घना
तू कर इसे अब मना-मना
यही है वक्त का तकाजा यारो
Monday, September 22, 2008
जिंदगी मांगती रही है हिसाब
Sunday, September 21, 2008
पोस्ट के नेचर के मुताबिक लगाएं तस्वीर
पेशकश : अनुराग अन्वेषी at 11:03 AM 2 प्रतिक्रियाएं
Labels: तस्वीर, नवभारत टाइम्स, फोटो, ब्लॉग, ब्लॉग बाइट
Monday, September 15, 2008
हादसों में हमारा भी हाथ
ऐसे मौकों पर एक्सक्लूसिव के नाम पर जो सनसनी पैदा की जाती है, सबसे तेज की दौड़ में जो हड़बड़ी दिखाई जाती है, वह लोगों का इत्मीनान छीन लेती है। ऐसी सनसनी की जगह सजगता पैदा करने की कोशिश हो, तो वाकई कोई बात बने।
हम जिस छोटी-सी पट्टी पर हेल्पलाइन नंबर चलाते हैं, सचमुच उसका दायरा बढ़ना चाहिए। और जितने बड़े दायरे में हंगामे को समेटते हैं उसे समेट कर पट्टी में लाने की जरूरत है। ऐसा नहीं कि घटनास्थल पर हमारे कैमरे न जाएं। हमारे रिपोर्टर वहां से रिपोर्टिंग न करें। बिल्कुल करें। घटनास्थल से रिपोर्टिंग कर वहां के बारे में बताना, बेशक बेहद जरूरी है। पर मीडिया को भाषा की उस शक्ति की भी समझ होनी चाहिए, जो किसी थके-हारे को शक्ति भी देती है।
फर्ज करें, आपके पड़ोसी के घर में किसी की असामयिक मौत हो गई। आप उसके घर जाते हैं तो इसलिए कि आपके भीतर उससे अपनत्व का कोई रिश्ता है। उसे आप सांत्वना देते हैं। सच बोलने के नाम पर यह नहीं कहते कि क्या यार, जिसे मरना था मर गया, अब कितनी देर तक टेसुए बहाएगा।
मतलब यह कि हम अपने समाज से अपनत्व का वह रिश्ता भूलते जा रहे हैं। भाषा की वह समझ खोते जा रहे हैं, जिससे कोहराम के समय भी राहत दी जा सकती है। अपने उस दायित्व को भी नजरअंदाज कर रहे हैं, जिसे निभाने से खौफ की उम्र बेहद छोटी हो जाती।
पेशकश : अनुराग अन्वेषी at 1:07 PM 5 प्रतिक्रियाएं
Labels: अखबार, दायित्व, दिल्ली, धमाके, मीडिया, सीरियल ब्लॉस्ट
आइए, लिंक करें हर बात को
आपके कई पत्र हमें मिले थे, जिनमें कहा गया था कि पोस्ट के बीच लिंक लगाने का तरीका बतायें। पिछले अंक में हमने वह तरीका आपको बताया था, पर साथ ही यह भी चर्चा की थी कि यह तरीका भले आसान है पर है दोषपूर्ण। लिंक लगाने के उस तरीके में दोष यह है कि लिंक की गई साइट किसी नये विंडो में न खुलकर मौजूद विंडो को ही कन्वर्ट कर देती है। इस बार ब्लॉग बाइट में एचटीएमएल की वह कोडिंग दी है, जिसके सहारे दिया गया लिंक नये विंडो में खुलेगा। नवभारत टाइम्स में छपी इस ताज़ा किस्त के लिए यहां क्लिक करें।
पेशकश : अनुराग अन्वेषी at 12:40 AM 2 प्रतिक्रियाएं
Labels: नवभारत टाइम्स, न्यू पोस्ट, पोस्ट, ब्लॉग, ब्लॉग बाइट, लिंक
Sunday, September 7, 2008
अपनी पोस्ट के बीच ऐसे लगाएं लिंक
पेशकश : अनुराग अन्वेषी at 11:21 AM 8 प्रतिक्रियाएं
Labels: नवभारत टाइम्स, न्यू पोस्ट, पोस्ट, ब्लॉग, ब्लॉग बाइट, लिंक
Friday, September 5, 2008
क्या है श्लील और क्या है अश्लील
पेशकश : अनुराग अन्वेषी at 11:32 PM 5 प्रतिक्रियाएं
Monday, September 1, 2008
झट से करें फॉन्ट का धर्मांतरण
पेशकश : अनुराग अन्वेषी at 9:59 AM 4 प्रतिक्रियाएं
Labels: कन्वर्टर, नवभारत टाइम्स, फॉन्ट, ब्लॉग, ब्लॉग बाइट, ब्लॉगवाणी