जिरह पढ़ें, आप अपनी लिपि में (Read JIRAH in your own script)

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जिरह करने की कोई उम्र नहीं होती। पर यह सच है कि जिरह करने से पैदा हुई बातों की उम्र बेहद लंबी होती है। इसलिए इस ब्लॉग पर आपका स्वागत है। आइए,शुरू करें जिरह।
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Thursday, January 23, 2014

दिल की बात कहो जब, बंद किवाड़ समझते हैं

दिल की बात कहो जब, बंद किवाड़ समझते हैं
अजब अहमक हैं वो, तिल को ताड़ समझते हैं

कितनी बार कहा कि खुली हवा में घूम आएं
घर में बैठे हैं और घर को तिहाड़ समझते हैं

तकलीफें तो हैं, पर मन है अब भी हरा-भरा
उनसे क्या कहूं जो मुझको उजाड़ समझते हैं

यह उसका असर नहीं, आपमें बसा वह डर है
कि उसके मिमियाने को भी दहाड़ समझते हैं

डूबने से डरता था, पर जब उतरा तो डूबकर तैरा
इंसानी तमीज देखो कि राई को पहाड़ समझते हैं

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