ओ साथी,
अपने भीतर जब अंधेरा बढ़ता है
वह अहं, राग और द्वेष का
किला गढ़ता है।
सच मानें
यही तो जड़ता है।
फिर भीतर ही भीतर
सारा कुछ सड़ता है
और आदमी
धीरे-धीरे मरता है।
हां साथी, इससे पहले
कि संवेदनाओं से लबरेज हमारा चेहरा
किसी भीड़ में गुम हो जाये,
और व्यवस्था को बदलने के लिए निकला जुलूस
किसी शवयात्रा में तब्दील हो
अपने भीतर
आस्था का दीया जलाएं।
इसकी टिमटिमाती लौ
खत्म कर देती है सारी आशंकाएं
हां साथी,
स्वीकार करें दीपावली पर
हमारी शुभाशंसाएं ।
Thodi si Bewafai....
3 years ago